हाल के वर्षों में, दिल्ली सहित देश के अधिकांश बड़े शहरों में ओजोन प्रदूषण के स्तर में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट ने इस समस्या को और भी गंभीरता से पेश किया है, खासकर दिल्ली के हरित क्षेत्रों में जहां ओजोन प्रदूषण की परत अधिक देखी गई है।
ओजोन प्रदूषण का बढ़ता खतरा
रिपोर्ट के अनुसार, ओजोन प्रदूषण के स्तर की वृद्धि का मुख्य कारण सतह पर मौजूद ओजोन कण हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक माने जाते हैं। सीएसई ने दिल्ली और एनसीआर क्षेत्रों में ओजोन प्रदूषण के उच्चतम स्तर वाले स्थानों की पहचान की है। इन क्षेत्रों में ओजोन प्रदूषण को रोकने के लिए विशेष उपायों की आवश्यकता है।
ओजोन प्रदूषण की प्रमुख बातें
ओजोन प्रदूषण को मापने के लिए आठ घंटे के औसत का उपयोग किया जाता है। यदि किसी निगरानी केंद्र में ओजोन प्रदूषकों का स्तर इस अवधि में 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक हो, तो इसे ओजोन प्रदूषित दिन माना जाता है। ओजोन कण तेज धूप के दौरान नाइट्रोजन ऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (वीओसी) के बीच रासायनिक प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं। इन प्रदूषकों के मुख्य स्रोत वाहनों, कारखानों, और कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से निकलने वाला धुआं हैं।
अधिक प्रभावित और कम प्रभावित क्षेत्रों की पहचान
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि दिल्ली के कुछ क्षेत्रों जैसे करणी सिंह शूटिंग रेंज और नरेला में ओजोन प्रदूषण की अधिक मात्रा देखी गई है। इसके विपरीत, आयानगर, चांदनी चौक, और पूसा जैसे घनी आबादी वाले इलाकों में ओजोन प्रदूषण का स्तर अपेक्षाकृत कम रहा है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की अनुसंधान और सलाहकार निदेशक अनुमिता रायचौधरी के अनुसार, सतह पर मौजूद ओजोन एक अत्यधिक प्रतिक्रियाशील गैस है, जो अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) और अन्य सांस की समस्याओं से पीड़ित लोगों के लिए खासकर खतरनाक है।
रिपोर्ट के अनुसार, धूल के कणों की अधिक मात्रा वाले प्रदूषक कणों की रोकथाम पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिए वाहनों, उद्योगों, खाना पकाने और ठोस ईंधन तथा खुले में कचरा जलाने से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के ठोस उपाय किए जाने चाहिए।
इस रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि ओजोन प्रदूषण का प्रभाव केवल दिल्ली के हरित क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि पूरे देश के बड़े शहरों में बढ़ रहा है, और इसके स्वास्थ्य पर प्रभाव को कम करने के लिए त्वरित और प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है।
दिल्ली और अन्य प्रमुख भारतीय शहरों में ओजोन प्रदूषण के बढ़ते स्तर ने एक नई चिंता को जन्म दिया है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की हाल की रिपोर्ट ने इस मुद्दे की गंभीरता को उजागर किया है, जिसमें दिखाया गया है कि ओजोन प्रदूषण न केवल राजधानी के हरित क्षेत्रों में बल्कि पूरे देश के प्रमुख शहरों में भी समस्या बन चुकी है।
इस प्रदूषण का मुख्य कारण तेज धूप के दौरान नाइट्रोजन ऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों के बीच रासायनिक प्रतिक्रियाएं हैं, जिनका प्रमुख स्रोत वाहनों, उद्योगों और बिजली संयंत्रों से निकलने वाला धुआं है। सतह पर मौजूद ओजोन कण स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं, विशेषकर अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज जैसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों के लिए।
रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में ओजोन प्रदूषण के उच्चतम स्तर वाले क्षेत्रों की पहचान की गई है, और इन क्षेत्रों में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए विशेष प्रयासों की आवश्यकता है। इसके साथ ही, अन्य क्षेत्रों में प्रदूषण की मात्रा अपेक्षाकृत कम पाई गई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि उचित प्रबंधन और निगरानी से ओजोन प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को कम करने के लिए, वाहनों, उद्योगों, और अन्य प्रदूषणकारी स्रोतों के प्रबंधन में सुधार की आवश्यकता है। इस दिशा में उठाए गए ठोस कदम न केवल ओजोन प्रदूषण के स्तर को कम करेंगे बल्कि नागरिकों के स्वास्थ्य को भी सुरक्षित रखेंगे। इस रिपोर्ट ने प्रदूषण के नियंत्रण और स्वस्थ वातावरण की दिशा में आवश्यक सुधारों की ओर ध्यान केंद्रित किया है।
Source- हिंदुस्तान समाचार पत्र