प्रयागराज में जारी महाकुंभ के दौरान मौनी अमावस्या का प्रमुख स्नान 29 जनवरी को आयोजित होने वाला है। लाखों श्रद्धालुओं के आने की संभावना है, जिससे कचरे और सीवेज प्रबंधन की चुनौती और बढ़ गई है। लेकिन क्या नगर निगम इन चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है? नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कचरा प्रबंधन पर नगर निगम की कार्यप्रणाली को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं।
एनजीटी की सुनवाई और तल्ख सवाल
20 जनवरी, 2025 को एनजीटी में एमसी मेहता मामले की सुनवाई के दौरान, चेयरमैन व जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ ने नगर निगम से पूछा कि छह महीने पहले प्रयागराज में मौजूद 14 लाख टन कचरे का ढेर अचानक कहां गायब हो गया। पीठ ने कहा, “छह महीने पहले मैंने खुद प्रयागराज में लाखों टन कचरे का ढेर देखा था। अचानक यह कचरा कहां चला गया? अगर यह निपटाया गया है, तो हमें बताइए कि यह कैसे संभव हुआ।”
लीगेसी वेस्ट का प्रबंधन
नगर निगम ने दावा किया कि छह महीने के भीतर 14 लाख टन लीगेसी वेस्ट को उपचारित कर दिया गया और इसे सीमेंट कंपनियों को सौंपा गया। लेकिन जब पीठ ने इन कंपनियों के नाम और कचरे के निपटारे की प्रक्रिया के सबूत मांगे, तो निगम स्पष्ट जवाब देने में विफल रहा।
पीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, “अगर इतना बड़ा काम इतना तेजी से हुआ है, तो इस मॉडल को दिल्ली समेत अन्य स्थानों पर क्यों नहीं लागू किया जा सकता?”
गंगा किनारे का कचरा प्रबंधन
एनजीटी ने गंगा के किनारे निकलने वाले कचरे पर भी सवाल उठाए। पीठ ने कहा, “रोजाना गंगा किनारे से भारी मात्रा में कचरा निकाला जा रहा है। उसका हिसाब-किताब कहां है? प्रयागराज की वास्तविक आबादी और रोजाना उत्पन्न होने वाले कचरे का आंकड़ा अभी तक क्यों नहीं दिया गया?”
नगर निगम ने दावा किया कि गंगा के किनारे से निकलने वाले कचरे का उपचार किया जा रहा है, लेकिन वह यह बताने में असमर्थ रहा कि इसका निपटारा कैसे और कहां किया जा रहा है।
अगली सुनवाई में हलफनामा दाखिल करने का आदेश
नगर निगम के वकील ने सुनवाई के दौरान कहा कि वे सभी सवालों का जवाब अगली सुनवाई में हलफनामा दाखिल कर देंगे। एनजीटी ने स्पष्ट किया कि अगली सुनवाई में इन सभी बिंदुओं पर पूरी जानकारी और सबूत पेश किए जाएं।
पर्यावरणीय चिंताएं और महाकुंभ का प्रभाव
महाकुंभ जैसे विशाल आयोजन पर्यावरण पर गहरा प्रभाव डालते हैं। लाखों श्रद्धालुओं के आने से गंगा के किनारों पर प्लास्टिक, सीवेज और अन्य कचरे का जमाव बढ़ जाता है। ऐसे में नगर निगम और प्रशासन पर यह जिम्मेदारी होती है कि वे प्रभावी कचरा प्रबंधन और गंगा को स्वच्छ रखने के लिए ठोस कदम उठाएं।
एनजीटी की सुनवाई ने एक बार फिर से यह उजागर किया है कि बड़े आयोजनों के दौरान पर्यावरणीय प्रबंधन में किस तरह की लापरवाही हो सकती है। प्रयागराज नगर निगम को अगली सुनवाई में न केवल अपने दावों को साबित करना होगा, बल्कि यह भी दिखाना होगा कि महाकुंभ के दौरान पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए वह कितने प्रभावी कदम उठा रहा है।