सुप्रीम कोर्ट ने यमुना नदी में प्रदूषण को लेकर आगरा नगर निगम को 58.39 करोड़ रुपये का पर्यावरण मुआवजा देने का आदेश दिया है। इस निर्णय का आधार नगर निगम की लापरवाही और पर्यावरणीय क्षरण है, जिसके कारण नदी की स्थिति गंभीर हो गई है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल हैं, ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश के खिलाफ नगर निगम की याचिका को खारिज कर दिया। पीठ ने स्पष्ट किया कि नगर निगम ने प्रदूषण कम करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए, बल्कि पर्यावरण और निवासियों के लिए परिस्थितियाँ और भी खराब कर दीं।
एनजीटी के निष्कर्ष
पीठ ने एनजीटी के अप्रैल के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि नगर निगम को अपने उत्तरदायित्व से बचने का कोई मौका नहीं है। एनजीटी ने मौजूदा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की विफलता की जानकारी दी और कहा कि यह न्यूनतम मानकों को भी पूरा नहीं कर रहा है। इसके चलते नदी में दूषित सीवेज का प्रवाह बढ़ रहा है, जिससे सभी नदियां प्रदूषित हो रही हैं।
न्यायालय की चिंताएँ
सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के उस निष्कर्ष को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि प्रदूषण से संबंधित उल्लंघनों को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत अपराध माना जाना चाहिए। पीठ ने स्पष्ट किया कि न्यायाधिकरण का अधिकार क्षेत्र पीएमएलए के तहत अपराधों के पंजीकरण का आदेश देने तक ही सीमित है।
आगरा नगर निगम के वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने इस मामले में दलील दी कि नए एसटीपी की स्थापना में देरी के पीछे कोर्ट और एनजीटी में लंबित आवेदन हैं। उन्होंने कहा कि नगर निगम प्रदूषण कम करने के लिए प्रयासरत है, लेकिन पीठ ने उनकी दलील को स्वीकार नहीं किया और कहा कि हमें कोई वास्तविक कार्रवाई नहीं दिख रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने नगर निगम को स्पष्ट रूप से कहा कि उसे मुआवजा देना ही होगा, क्योंकि इसका उपयोग पर्यावरण की बहाली और सुधार के लिए किया जाएगा। यह निर्णय न केवल आगरा के लिए, बल्कि पूरे देश में जल निकायों के संरक्षण और प्रदूषण कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अब देखना होगा कि नगर निगम इस आदेश के बाद क्या ठोस कदम उठाता है, ताकि यमुना नदी और अन्य जल स्रोतों को प्रदूषण से बचाया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश आगरा नगर निगम के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी है कि पर्यावरण के प्रति उनकी जिम्मेदारी को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। यमुना नदी की स्थिति को सुधारने के लिए तत्काल और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। जल प्रदूषण के इस संकट का सामना करने के लिए नगर निगम को न केवल आर्थिक दंड भरना होगा, बल्कि दीर्घकालिक समाधान भी लागू करने होंगे।
आगरा नगर निगम की लापरवाही से प्रदूषित यमुना न केवल स्थानीय निवासियों के लिए समस्या बनी हुई है, बल्कि यह देशभर में जल निकायों के प्रति बढ़ती चिंता को भी उजागर करती है। इसे ध्यान में रखते हुए, सभी संबंधित प्राधिकरणों को मिलकर काम करना चाहिए ताकि प्रदूषण के स्रोतों को रोका जा सके और जल निकायों की सफाई एवं संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।
आने वाले समय में यह आवश्यक होगा कि नगर निगम और अन्य स्थानीय निकाय जल प्रबंधन के लिए नवीनतम तकनीकों का उपयोग करें और सस्टेनेबल विकास के सिद्धांतों को अपनाएँ। यदि हम आज ठोस कदम नहीं उठाते हैं, तो यह स्थिति भविष्य में और भी गंभीर हो सकती है। यही कारण है कि अदालत का यह आदेश एक महत्वपूर्ण शुरुआत है, जिसका उद्देश्य न केवल यमुना, बल्कि पूरे देश की जल संसाधनों की रक्षा करना है।