स्वच्छता अभियान की शुरुआत 2 अक्टूबर 2014 को जब हुई थी, तब देश में सफाई को एक बड़े बदलाव के रूप में देखा गया था। इस अभियान के तहत कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए, जिसमें से एक प्रमुख लक्ष्य शहरों में जमा कचरे के पहाड़ों को खत्म करना भी था। लेकिन, दस साल बाद भी इस दिशा में प्रगति उतनी नहीं हुई, जितनी उम्मीद थी।
केंद्र सरकार की योजना और राज्यों की ढिलाई
कचरे के निपटान के लिए केंद्र सरकार ने 3,000 करोड़ रुपये से अधिक की योजना शुरू की थी। इस योजना का उद्देश्य था राज्यों के साथ मिलकर पुराने कूड़े के पहाड़ों को समाप्त करना। परन्तु कई राज्यों की ढिलाई के चलते यह योजना धीमी गति से आगे बढ़ी है। हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में केवल 15 प्रतिशत कूड़े का ही निपटान हो सका है।
देशभर में फैले लगभग 2,424 कूड़ा डंपिंग साइट्स में से 470 को ही साफ किया जा सका है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि 730 डंपिंग साइट्स को अभी तक छुआ भी नहीं गया है। यह कूड़ा लगभग 15,000 एकड़ जमीन को ढक रहा है, जिसका निपटान होना जरूरी है।
गुजरात और तमिलनाडु की सफलता
हालांकि, कुछ राज्यों ने इस दिशा में सराहनीय प्रयास किए हैं। गुजरात और तमिलनाडु ने इस अभियान में अच्छी प्रगति दिखाई है। इन राज्यों में तीन-चौथाई कचरे का निपटान हो चुका है और ये जल्द ही अपने लक्ष्यों को पूरा कर सकते हैं। गुजरात ने पिछले तीन साल में दिल्ली के बराबर कूड़ा खत्म किया है, जबकि तमिलनाडु भी इसी राह पर है।
दूसरी तरफ, बंगाल और कर्नाटक जैसे राज्यों में कचरे के निपटान की स्थिति लगभग शून्य है। बंगाल में 143 लाख टन कचरा जमा है, पर तीन साल में मात्र 9 लाख टन कचरे का निपटान हुआ है। कर्नाटक की स्थिति और भी खराब है, जहां कचरे के पहाड़ को हाथ तक नहीं लगाया गया।
दिल्ली के लिए गुजरात से सीखने का समय
राजधानी दिल्ली में कचरे के पहाड़ अब भी बड़ी चुनौती बने हुए हैं। दिल्ली को गुजरात से प्रेरणा लेनी चाहिए, जिसने तीन साल में दिल्ली के बराबर कचरा साफ किया है। दिल्ली में कूड़े के पहाड़ों का निपटान न केवल जमीन की कमी का मुद्दा है, बल्कि यह पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बन रहा है।
आगे की राह
केंद्र सरकार ने एसबीएम 2.0 (स्वच्छ भारत मिशन) के तहत यह सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा है कि भविष्य में ऐसी समस्याएं न उभरें। इसके लिए सभी राज्यों को ठोस कचरा प्रबंधन में तेजी लाने की आवश्यकता है। यदि अन्य राज्य गुजरात और तमिलनाडु के मॉडल को अपनाते हैं, तो देश जल्द ही इस कचरे की समस्या से निजात पा सकता है।
आने वाले वर्षों में, यदि राज्यों के बीच ठोस कचरा निपटान के प्रति प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और सभी राज्य इस दिशा में ठोस कदम उठाते हैं, तो यह मिशन अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है। स्वच्छता का यह सफर अभी लंबा है, लेकिन समर्पण और प्रभावी नीतियों से इसे संभव बनाया जा सकता है।
देशभर में ठोस कचरे के निपटान में राज्य सरकारों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। केंद्र की योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने और नागरिकों में जागरूकता फैलाने से ही कचरे के पहाड़ों को खत्म किया जा सकेगा।
स्वच्छ भारत अभियान ने देश में स्वच्छता की दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाया है और लोगों को साफ-सफाई के प्रति जागरूक किया है। हालांकि, अभियान के तहत कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल हुई हैं, जैसे खुले में शौच मुक्त (ODF) भारत की घोषणा और नागरिकों की भागीदारी में वृद्धि, फिर भी ठोस कचरा निपटान और सफाई की स्थायी आदतों को अपनाने जैसी चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं। आगे का रास्ता इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार और नागरिक एक साथ मिलकर स्वच्छता को प्राथमिकता में कैसे बनाए रखते हैं। अगर सही प्रयास जारी रहते हैं, तो भारत आने वाले वर्षों में और अधिक स्वच्छ और स्वस्थ देश बनने की ओर अग्रसर हो सकता है।