आईआईटी गांधीनगर के हाल ही में जारी एक अध्ययन से पता चलता है कि मानसून के दौरान बहने वाली अमृत बूंदों को बचाकर और उनकी भरपाई करके पानी की कमी की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। बारिश की कमी के कारण फसलों की सिंचाई पर निर्भरता और बढ़ गई है, जिससे भूजल का अत्यधिक उपयोग हो रहा है।
हर जगह दिखाई देने वाले पानी की प्रचुरता के बीच इस बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन की कमी की बात करना अजीब लग सकता है, लेकिन सच यह है कि साल के अधिकांश महीनों में लोगों को पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गांधीनगर के शोधकर्ताओं द्वारा हाल ही में जारी एक अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण खाद्यान्न की खान कहे जाने वाले उत्तर भारत ने पिछले 20 सालों में अपनी बहुमूल्य भूजल संपदा का 450 क्यूबिक किमी हिस्सा खो दिया है। भूजल की यह इतनी बड़ी मात्रा है कि देश के सबसे बड़े जलाशय इंदिरा सागर बांध को 37 बार भरा जा सकता है।
मानसून की बारिश बचाने की जरूरत
इस क्षेत्र में मानसून की बारिश की कमी और अपेक्षाकृत गर्म सर्दियों के कारण फसलों की सिंचाई के लिए भूजल पर अत्यधिक निर्भरता इसका मुख्य कारण माना जाता है। यह तस्वीर हमें यह भी बताती है कि मौजूदा मानसून के मौसम में बरसने वाली अमृत की बूंदों को बचाकर धरती के गर्भ में पहुंचाकर इस नुकसान की भरपाई की जा सकती है।
प्रतीकात्मक सिंचाई के लिए पानी की मांग में 20% की वृद्धि होगी
अध्ययन से पता चला है कि 2009 में लगभग 20 प्रतिशत कम मानसून और उसके बाद सर्दियों के तापमान में एक डिग्री की वृद्धि ने भूजल भंडारण पर हानिकारक प्रभाव डाला, जिससे इसमें 10 प्रतिशत की कमी आई। सर्दियों के दौरान मिट्टी की नमी की कमी भी पिछले चार दशकों में काफी बढ़ गई है। शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि लगातार गर्मी के कारण मानसून 10-15 प्रतिशत तक शुष्क रहेगा और सर्दियां एक से पांच डिग्री सेल्सियस तक गर्म रहेंगी। इससे सिंचाई के लिए पानी की मांग छह से 20 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी।
भूजल पुनर्भरण में कमी
पृथ्वी विज्ञान के प्रोफेसर और अध्ययन के प्रमुख लेखक विमल मिश्रा ने कहा कि 2002 से 2021 तक उत्तर भारत में भूजल लगभग 450 क्यूबिक किलोमीटर कम हुआ है। जलवायु परिवर्तन के कारण निकट भविष्य में इसकी मात्रा में और कमी आएगी। इस मौसम में तापमान में 0.3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
जल संकट पर दबाव
हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) के शोधकर्ताओं की एक टीम ने कहा कि निकट भविष्य में मानसून के दौरान कम बारिश और सर्दियों के दौरान तापमान में वृद्धि के कारण सिंचाई के लिए पानी की मांग बढ़ेगी और इससे भूजल पुनर्भरण में कमी आएगी, जिससे उत्तर भारत में पहले से ही कम हो रहे भूजल संसाधनों पर और दबाव पड़ेगा।
मानसून के मौसम में बारिश की कमी
अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि 1951-2021 की अवधि के दौरान मानसून के मौसम यानी जून से सितंबर में उत्तर भारत में बारिश में 8.5 प्रतिशत की कमी आई है। इस अवधि के दौरान क्षेत्र में सर्दियों में वर्षा की कमी के कारण भूजल पर निर्भरता बढ़ गई है।
अगर हम अब भी नहीं चेते तो आने वाले समय में पानी की कमी का संकट और भी विकराल रूप ले सकता है। इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए वैश्विक स्तर पर ठोस कदम उठाने की जरूरत है। मानसून की अमृत बूंदों को बचाना और भूजल का संतुलित उपयोग करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
source and data – अमर उजाला समाचार पत्र