नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पश्चिम कामेंग जिले के आरयूपीए क्षेत्र में अवैध खनन और क्रशर गतिविधियों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है। यह आदेश 25 सितंबर, 2024 को जारी किया गया, जिसमें आरोप लगाया गया कि ये गतिविधियां वर्षों से बिना लाइसेंस के चल रही हैं।
जांच का उद्देश्य
एनजीटी ने समिति को निर्देश दिया है कि वे इस क्षेत्र में खनन गतिविधियों की गंभीरता का आकलन करें और यदि कोई पर्यावरणीय उल्लंघन पाया जाता है, तो संबंधित लोगों की पहचान करें। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि सभी संबंधित पक्षों को अपना उत्तर प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाएगा।
स्थानीय अधिकारियों की भूमिका
शिकायतकर्ता ने दावा किया है कि अवैध खनन गतिविधियों में स्थानीय अधिकारियों की संलिप्तता है, जिससे वनों का तेजी से विनाश हो रहा है। इस विनाश का संभावित प्रभाव आगामी मानसून में सामने आ सकता है, जब भारी बारिश के कारण भूस्खलन और बाढ़ जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
क्या कहती है रिपोर्ट?
अदालत ने पर्यावरण एवं वन विभाग के प्रधान सचिव, अरुणाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, और जिला खनन अधिकारी को नोटिस जारी किया है। इन सभी को चार सप्ताह के भीतर हलफनामे पर अपना उत्तर देना होगा। यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो यह दर्शाता है कि एनजीटी अवैध गतिविधियों को लेकर गंभीर है और इस मामले में जांच को प्राथमिकता दे रहा है।
इस आदेश से यह स्पष्ट है कि अवैध खनन पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। यदि जांच में आरोप सही पाए जाते हैं, तो संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी, जिससे भविष्य में इस प्रकार की अवैध गतिविधियों पर नियंत्रण पाने में मदद मिल सकेगी।
पश्चिम कामेंग में अवैध खनन की समस्या ने न केवल स्थानीय वन्यजीवों और पर्यावरण को खतरे में डाला है, बल्कि इससे संभावित प्राकृतिक आपदाओं की आशंका भी बढ़ गई है। एनजीटी द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति का गठन एक सकारात्मक कदम है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि इस क्षेत्र में सभी गतिविधियाँ पर्यावरण के मानकों के अनुरूप हों। यदि जांच में आरोप सही पाए जाते हैं, तो जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। यह मामला अन्य क्षेत्रों के लिए भी एक चेतावनी है कि अवैध खनन और पर्यावरणीय उल्लंघनों को किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस प्रकार के कदम न केवल स्थानीय निवासियों के हितों की रक्षा करेंगे, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों का सतत प्रबंधन भी सुनिश्चित करेंगे।
Source- down to earth