आर्कटिक, जो पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के चारों ओर फैला हुआ क्षेत्र है, पिछले कुछ दशकों में तेजी से गर्म हुआ है। 1979 से 2021 के बीच, यह क्षेत्र वैश्विक औसत से चार गुना तेजी से तापमान वृद्धि का सामना कर चुका है। हालांकि, इसका व्यापक असर अब तक अपेक्षाकृत कम समझा गया है, लेकिन यह बदलाव कई गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य जोखिमों को जन्म दे सकता है। इनमें सबसे प्रमुख खतरा भविष्य में जूनोटिक बीमारियों (जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाली बीमारियां) का केंद्र बनने की संभावना है।
जैसे-जैसे आर्कटिक गर्म हो रहा है, वहां की पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। तापमान में वृद्धि से समुद्री बर्फ पिघल रही है और इस प्रक्रिया में हानिकारक रसायन जैसे पारा और पॉलीफ्लोरोएल्काइल पदार्थ वातावरण में घुलने लगे हैं। ये रसायन मानव और पशु दोनों की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर बना सकते हैं, जिससे वे संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
आर्कटिक के बर्फीले क्षेत्रों में हजारों वर्षों से जमे सूक्ष्मजीवों के फिर से सक्रिय होने का खतरा भी तेजी से बढ़ रहा है। जैसे-जैसे बर्फ पिघल रही है, इन सूक्ष्मजीवों के वातावरण में प्रवेश करने और मानवों तथा जानवरों को संक्रमित करने की संभावना बढ़ रही है। इनमें से कई जीव पहले से ज्ञात बीमारियों का कारण बन सकते हैं, जिनके खिलाफ किसी भी प्रतिरक्षा सुरक्षा की कमी होगी।
इसके अलावा, इस क्षेत्र में मानवीय गतिविधियां जैसे कि मछली पकड़ना, पर्यटन, और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी तेजी से बढ़ रहा है। इस गतिविधियों से नई बीमारियों के उभरने और फैलने की संभावना बढ़ रही है, खासकर जब पशुओं और इंसानों का संपर्क बढ़ता है।
आर्कटिक क्षेत्र में अब तक संक्रामक बीमारियों पर शोध काफी सीमित रहा है। यह क्षेत्र, जो दुनिया का एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है, पर पर्याप्त निगरानी तंत्र नहीं है। यह स्थिति एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य संकट को जन्म दे सकती है, अगर इसे समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया।
वर्तमान में वैश्विक स्तर पर इस क्षेत्र के स्वास्थ्य और पर्यावरणीय खतरों को समझने और उन पर नजर रखने के लिए अधिक वित्तीय और तकनीकी संसाधनों की आवश्यकता है। आर्कटिक परिषद और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं इस दिशा में काम कर रही हैं, लेकिन उन्हें और प्रभावी ढंग से कार्य करने की जरूरत है।
आर्कटिक क्षेत्र का व्यापक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय मूल्यांकन कार्यक्रम विकसित किया जाना चाहिए, जिसमें प्रदूषण और बीमारियों की निगरानी को प्राथमिकता दी जाए। इससे हम भविष्य में उभरती महामारियों से बेहतर तरीके से निपटने के लिए तैयार हो सकेंगे।आर्कटिक क्षेत्र तेजी से गर्म हो रहा है, जिससे पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढ़ रहे हैं। अगर समय रहते इसे नियंत्रित नहीं किया गया, तो भविष्य में यहां से महामारी का प्रकोप शुरू हो सकता है। दुनिया भर के स्वास्थ्य और पर्यावरण संगठनों को इस ओर ध्यान देकर प्रभावी कार्रवाई करनी चाहिए।
source- down to earth