विश्व स्वास्थ्य समुदाय और पर्यावरण विशेषज्ञों के लिए एक नई रिपोर्ट ने चिंता की लहर दौड़ा दी है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा जारी ताजा रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय परिवर्तनों ने विभिन्न प्रजातियों के आवास क्षेत्रों को प्रभावित किया है, जिससे जानवरों और इंसानों के बीच नए संपर्क स्थापित हो रहे हैं। इससे जूनोटिक बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ गया है, जो वर्ष 2030 तक एक और महामारी का कारण बन सकती हैं।
जूनोटिक बीमारियां, जिनके कारण वायरस, बैक्टीरिया, परजीवी और फंगस जैसे कीटाणु होते हैं, बहुत तेजी से फैलती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में दुनिया में लगभग 17 लाख अज्ञात वायरस हैं, जो संक्रामक बीमारियों का कारण बन सकते हैं और गंभीर स्वास्थ्य संकट उत्पन्न कर सकते हैं।
कुछ जूनोटिक रोग भूमि उपयोग में परिवर्तन, वनों की कटाई, आवास की हानि, बढ़ते शहरीकरण, वन्यजीव तस्करी और असंतुलित कृषि गतिविधियों के कारण उभर रहे हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगले तीन दशकों में कुछ नए जूनोटिक रोग 12 गुना अधिक लोगों की जान ले सकते हैं। वैश्विक स्तर पर उभरने वाले संक्रामक रोगों में से लगभग 60% जूनोटिक हैं, और इनकी घटनाओं में सालाना 5 से 8 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है।
रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक, सबसे आम रोगजनकों के कारण मनुष्यों में 2020 की तुलना में दस गुना अधिक मौतें होने का अनुमान है। डब्ल्यूएचओ ने भी पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र में जूनोटिक बीमारियों को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बढ़ता हुआ खतरा बताया है, जहां पिछले दो दशकों में 22 देशों में से 18 में नए जूनोटिक रोग उभर कर सामने आए हैं।
इसके अतिरिक्त, 24 देशों में एवियन इन्फ्लूएंजा (H5N1) के 891 मामले सामने आए हैं, जिनमें लोग संक्रमित पक्षियों के संपर्क में आने से बीमार हुए हैं। रिपोर्ट में चिंता व्यक्त की गई है कि अज्ञात या नजरअंदाज किए गए रोगजनक भविष्य में महामारी का कारण बन सकते हैं, और इस प्रकार के जोखिमों से बचने के लिए तत्काल उपाय करने की आवश्यकता है।
source and data – अमर उजाला