वाहनों के प्रदूषण नियंत्रण के लिए नया सुझाव: व्हीकल हेल्थ इंडेक्स सिस्टम

saurabh pandey
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दिल्ली में लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण और वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन के मद्देनजर, दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (DTU) के एक हालिया अध्ययन में एक अहम सुझाव सामने आया है। विश्वविद्यालय ने AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) की तर्ज पर एक नया व्हीकल हेल्थ इंडेक्स या एग्जॉस्ट एमिशन इंडेक्स (EEC) सिस्टम लागू करने की सिफारिश की है। यह सिस्टम वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को मापने और उनकी नियमित जांच करने के लिए तैयार किया गया है, जिससे प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकेगा।

क्या कहता है अध्ययन?

DTU के पर्यावरण विज्ञान एवं इंजीनियरिंग विभाग द्वारा किए गए इस शोध में 2040 डीजल और पेट्रोल वाहनों को शामिल किया गया। अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली की सड़कों पर चलने वाले कई वाहन पहले ही निर्धारित माइलेज और किलोमीटर सीमा को पार कर चुके हैं, बावजूद इसके उनका रखरखाव और प्रदूषण जांच मानकों के अनुरूप नहीं हो रहा है। इस वजह से ये वाहन वायु प्रदूषण को बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं।

शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि बहुत से वाहन चालकों को यह जानकारी नहीं होती कि उनके वाहन कितनी प्रदूषण फैला रहे हैं और उन्हें इसकी मरम्मत या सुधार कैसे करनी चाहिए। ऐसे में EEC सिस्टम का उद्देश्य वाहनों के स्वास्थ्य को मापना और प्रदूषण नियंत्रण के लिए आवश्यक कदम उठाना होगा।

EEC सिस्टम कैसे काम करेगा?

EEC सिस्टम एक प्रकार का व्हीकल हेल्थ इंडेक्स होगा, जो वाहनों के टेल-पाइप उत्सर्जन की जांच करेगा और उनकी सेहत की रिपोर्ट तैयार करेगा। जैसे AQI शहरों की वायु गुणवत्ता का सूचक होता है, वैसे ही EEC वाहनों के प्रदूषण स्तर का सूचक होगा। यह सिस्टम वाहनों के नियमित निरीक्षण और मरम्मत के लिए वाहन मालिकों को जागरूक करेगा।

वाहनों की उम्र और प्रदूषण के बीच संबंध

शोध में यह भी सामने आया कि कई वाहन अपनी उम्र के हिसाब से सही हैं, लेकिन किलोमीटर के मापदंडों के अनुसार अपनी सीमा पार कर चुके हैं। इसके बावजूद उनका इस्तेमाल हो रहा है, जो कि पर्यावरण के लिए खतरा है। प्रोफेसर राजीव कुमार मिश्रा, जो इस शोध के प्रमुख हैं, बताते हैं कि टेलपाइप उत्सर्जन का सीधा संबंध वाहनों की उम्र और उनके रखरखाव से है। जैसे-जैसे रखरखाव में कमी आती है, वैसे ही वाहनों से होने वाला प्रदूषण बढ़ता जाता है।

प्रदूषण नियंत्रण के लिए सख्त नियमों की जरूरत

शोध में यह भी कहा गया कि बीएस-4 और बीएस-6 जैसे उत्सर्जन मानकों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। इसके अलावा, वाहनों की नियमित स्वास्थ्य जांच, लोड उत्सर्जन परीक्षण और माइलेज के हिसाब से जांच भी जरूरी है, ताकि वाहनों के प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके।

EEC सिस्टम, अगर लागू किया जाता है, तो यह प्रदूषण नियंत्रण के क्षेत्र में एक बड़ी पहल हो सकती है। यह न केवल वाहन मालिकों को उनके वाहनों की स्थिति के बारे में जानकारी देगा, बल्कि वाहनों के उचित रखरखाव और मरम्मत को भी सुनिश्चित करेगा। इस प्रणाली के जरिए दिल्ली जैसे शहरों में वायु प्रदूषण को कम करने में बड़ी मदद मिल सकती है।

दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (DTU) द्वारा सुझाया गया एग्जॉस्ट एमिशन इंडेक्स (EEC) सिस्टम वाहनों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एक प्रभावी कदम हो सकता है। यह प्रणाली वाहन मालिकों को उनके वाहनों की स्वास्थ्य स्थिति और उत्सर्जन के स्तर के बारे में जागरूक करेगी, जिससे वे समय पर रखरखाव और मरम्मत कर सकेंगे। साथ ही, प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए सख्त मानकों के पालन की आवश्यकता है, जिससे दिल्ली जैसे शहरों में वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकेगा। EEC सिस्टम पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास साबित हो सकता है।

Source- dainik jagran

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