इंग्लैंड की लॉफबोरो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि इंटरनेट पर मीम्स और ईमेल का अत्यधिक उपयोग पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है। प्रोफेसर इयान हॉजकिंसन के अनुसार, कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले 68 फीसदी डेटा का दोबारा उपयोग नहीं किया जाता और यह सभी डेटा कार्बन फुटप्रिंट का कारण बनता है।
प्रदूषण के स्रोत
डेटा सेंटर की वृद्धि और संचालन के कारण बड़ी मात्रा में ऊर्जा की खपत होती है, जिससे वातावरण में गर्मी और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। इसके लिए डेटा सेंटरों में एसी का इस्तेमाल किया जाता है, जो बाहर ग्रीनहाउस गैसों को बढ़ावा देता है। इससे वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है और जलवायु संकट को और बढ़ावा मिलता है।
ईमेल और डेटा का कार्बन फुटप्रिंट
ईमेल के माध्यम से भेजे गए संदेश भी पर्यावरण पर प्रभाव डालते हैं। उदाहरण के लिए, एक छोटा ईमेल 0.2 ग्राम कार्बन उत्सर्जित करता है, जबकि 100 लोगों को भेजा गया ईमेल 17 ग्राम कार्बन उत्सर्जित करता है। इसी तरह, अनपढ़े स्पैम ईमेल और बड़ी फाइलें भी ऊर्जा की खपत को बढ़ाती हैं।
गूगल और डेटा का उत्सर्जन
गूगल के डेटा सेंटरों से जुड़े उत्सर्जन में हाल के वर्षों में वृद्धि हुई है। 2023 में, गूगल ने 13% की वृद्धि के साथ 14.3 मीट्रिक टन का उत्सर्जन दर्ज किया है। यह वृद्धि डेटा के निरंतर संचय और उपयोग के कारण हो रही है।
समाधान और सुझाव
प्रोफेसर हॉजकिंसन का कहना है कि जंक डेटा को हटाना जलवायु संकट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। क्लाउड ऑपरेटरों को जंक डेटा को डिलीट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि ऊर्जा की खपत कम की जा सके और कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित किया जा सके।
डिजिटल डेटा और ईमेल का अत्यधिक उपयोग पर्यावरण के लिए हानिकारक है। इससे निपटने के लिए जिम्मेदार डेटा प्रबंधन और जंक डेटा की सफाई जरूरी है। यह जलवायु संकट को नियंत्रित करने में सहायक हो सकता है और भविष्य में पर्यावरणीय समस्याओं को कम कर सकता है।
Source – हिंदुस्तान समाचार पत्र