जापानी वैज्ञानिकों ने सर्वाइकल कैंसर की प्रारंभिक अवस्था में पहचान के लिए एक नई बायोमार्कर विधि विकसित की है। यह विधि मौजूदा परीक्षणों की तुलना में अधिक सटीकता और प्रभावशीलता प्रदान करती है।
हर साल विश्वभर में सर्वाइकल कैंसर के लगभग पांच लाख नए मामले सामने आते हैं। इस कैंसर की प्रारंभिक पहचान महत्वपूर्ण है, क्योंकि समय पर निदान से उपचार की संभावना और प्रभावशीलता बढ़ जाती है। हाल ही में जापान के फुजिता हेल्थ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ताकुमा फुजी के नेतृत्व में एक शोध दल ने गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के लिए एक बायोमार्कर की पहचान की है।
वर्तमान में, सर्वाइकल कैंसर और सीआईएन (सर्वाइकल इंट्राएपिथेलियल नियोप्लासिया) की पहचान के लिए साइटोलॉजी और एचपीवी परीक्षणों का उपयोग किया जाता है, लेकिन इनकी सटीकता सीमित होती है। फुजी के शोध में सीरम और गर्भाशय ग्रीवा के बलगम के नमूनों से असामान्य यौगिकों की पहचान की गई है, जो रोग की जल्दी पहचान में सहायक हो सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने सीरम और थूक के नमूनों में miRNA और साइटोकाइन प्रोफाइल की तुलना की। परिणामस्वरूप, थूक के नमूनों में miRNAs और साइटोकाइन्स का विशिष्ट संयोजन अधिक प्रभावी पाया गया। यह निष्कर्ष दर्शाते हैं कि स्थानीय अभिव्यक्ति स्तरों पर ध्यान केंद्रित करना एक बेहतर नैदानिक रणनीति हो सकती है।
प्रोफेसर फुजी के अनुसार, इस नई विधि से गर्भाशय ग्रीवा के ट्यूमर को सामान्य ऊतकों से अधिक सटीकता से अलग किया जा सकता है, जिससे कैंसर और कैंसर-पूर्व स्थितियों की पहचान में सुधार हो सकता है।
Source- दैनिक जागरण