प्रकृति का कहर: भारत में चरम जलवायु घटनाओं का बढ़ता संकट

saurabh pandey
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भारत में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे देश के अधिकांश जिले मौसम के अत्यधिक खतरों से प्रभावित हो रहे हैं। हाल के अध्ययनों में पता चला है कि देश के 85% से अधिक जिले अब बाढ़, सूखा, चक्रवात और लू जैसी चरम मौसमी घटनाओं से जूझ रहे हैं। विशेषकर उन जिलों में, जहां पहले सूखा था, अब अत्यधिक बारिश हो रही है, जबकि पारंपरिक रूप से बाढ़ग्रस्त इलाके सूखे की समस्या से जूझ रहे हैं।

बाढ़ और सूखे की घटनाओं में वृद्धि

पिछले कुछ दशकों में बाढ़ और सूखे की घटनाओं में चार से पांच गुना वृद्धि दर्ज की गई है। पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत के जिले बाढ़ के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील माने जा रहे हैं, वहीं दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में भी इसका प्रभाव देखा जा रहा है। उदाहरण के लिए, बिहार, त्रिपुरा, केरल और झारखंड में जलवायु परिवर्तन के कारण पारंपरिक मौसमी पैटर्न में व्यापक परिवर्तन देखे गए हैं।

कई जिलों में चरम मौसमी घटनाओं का दुष्प्रभाव

देश के विभिन्न राज्यों, जैसे बिहार, ओडिशा, गुजरात, राजस्थान, और उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन के कारण एक से अधिक चरम मौसम की घटनाएं देखी जा रही हैं। शोध के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण इन क्षेत्रों में सूखे, बाढ़ और चक्रवात जैसी घटनाओं में भारी वृद्धि हुई है। खासकर, हिमालयी क्षेत्र के जिलों में बर्फ की परत का गायब होना और मूसलाधार बारिश के कारण भूस्खलन जैसी समस्याएं गहरा रही हैं।

2036 तक 1.4 बिलियन लोग प्रभावित हो सकते हैं

शोधकर्ताओं का मानना है कि 2036 तक भारत की लगभग 1.4 बिलियन आबादी जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से प्रभावित होगी। तापमान में वृद्धि, असमान वर्षा और प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती घटनाएं इन खतरों को और बढ़ा सकती हैं। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अब आवश्यक है कि देशव्यापी रणनीतियों और योजनाओं पर गंभीरता से काम किया जाए।

जलवायु परिवर्तन अब केवल भविष्य की चेतावनी नहीं है, बल्कि यह आज का सबसे बड़ा संकट बन चुका है। इस संकट से निपटने के लिए हमें जलवायु परिवर्तन के खतरों को गंभीरता से लेते हुए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। अन्यथा, प्रकृति का यह कहर भविष्य में और भी विकराल रूप ले सकता है।

जलवायु परिवर्तन भारत में एक गंभीर संकट के रूप में उभर रहा है, जिससे देश के अधिकांश हिस्से चरम मौसमी घटनाओं का सामना कर रहे हैं। बाढ़, सूखा, चक्रवात और लू जैसी आपदाएं तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे लोगों की आजीविका, कृषि और बुनियादी ढांचे पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। इन घटनाओं का लगातार बढ़ता दायरा यह संकेत देता है कि भविष्य में यह समस्या और भी विकट हो सकती है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और इनसे निपटने के लिए ठोस और टिकाऊ कदम उठाना अत्यावश्यक हो गया है।

Source- dainik jagran

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