बढ़ते शहरीकरण के साथ सिमटे प्राकृतिक आवास: क्या सीखना होगा वन्य जीवों के साथ सह अस्तित्व ?

saurabh pandey
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दुनिया भर में तेजी से बढ़ते शहरीकरण ने प्राकृतिक आवासों को सिकुड़ने पर मजबूर कर दिया है। इस बदलाव का सबसे बड़ा असर वन्यजीवों और इंसानों के बीच की दूरी पर पड़ा है। अब शहरों में वे प्रजातियां भी देखी जा रही हैं, जो पहले यहां कभी नहीं देखी जाती थीं। यह स्थिति न केवल इंसानों और जानवरों के बीच टकराव का कारण बन रही है, बल्कि भविष्य में और भी जटिल समस्याओं की ओर इशारा कर रही है।

शहरी पारिस्थितिकी तंत्र का महत्व

जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ रहा है, वैसे-वैसे शहरी पारिस्थितिकी तंत्र को समझना और महत्वपूर्ण हो गया है। इन प्रजातियों का शहरों में बढ़ता दबाव यह दर्शाता है कि आने वाले समय में हमें इन वन्यजीवों के साथ सह-अस्तित्व की कला सीखनी होगी। इसके लिए जरूरी है कि हम उन प्रजातियों को बेहतर ढंग से समझें जो इंसानी गतिविधियों और कचरे पर निर्भर हो रही हैं।

इंसानी कचरे पर निर्भरता और बदलता व्यवहार

शहरी क्षेत्रों में जंगली जीवों का इंसानी कचरे पर निर्भरता तेजी से बढ़ रही है। भारत के पश्चिम बंगाल में किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया कि 17 प्रजातियों के जीव इंसानी कचरे पर निर्भर होते जा रहे हैं। इनमें पक्षियों की 12 प्रजातियां और स्तनधारी जीवों की 5 प्रजातियां शामिल हैं। इनमें कुत्ते, चितकबरी मैना, धब्बेदार ग्रेटर कौकल जैसी प्रजातियां प्रमुख रूप से पाई गईं, जो आमतौर पर मनुष्यों के आसपास नहीं देखी जाती थीं।

शहरीकरण और जैवविविधता संरक्षण

शहरीकरण के साथ-साथ जैवविविधता के संरक्षण की चुनौतियाँ भी बढ़ रही हैं। जैसे-जैसे शहरीकरण का विस्तार हो रहा है, वैसे-वैसे वन्यजीवों के व्यवहार में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। वे जीव, जो कभी इंसानों से दूर रहना पसंद करते थे, अब इंसानी बस्तियों के करीब आ रहे हैं और उनके भोजन के लिए प्रतिस्पर्धा भी कर रहे हैं।

शहरों में वन्यजीवों के साथ सह-अस्तित्व की आवश्यकता

यह बदलती हुई स्थिति इस बात का संकेत है कि हमें शहरीकरण के साथ-साथ जैवविविधता संरक्षण के प्रयासों पर भी ध्यान देना होगा। वन्यजीवों के साथ सह-अस्तित्व को सुनिश्चित करना आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। इसके लिए जरूरी है कि हम शहरी पारिस्थितिकी तंत्र को समझें और उसके अनुसार कदम उठाएं।

बढ़ते शहरीकरण और सिकुड़ते प्राकृतिक आवासों के कारण, इंसान और वन्यजीवों के बीच की दूरी लगातार कम होती जा रही है। इसका प्रभाव सिर्फ जीवों के व्यवहार पर ही नहीं, बल्कि इंसानों और वन्यजीवों के बीच संबंधों पर भी पड़ रहा है। ऐसे में, जैवविविधता के संरक्षण के प्रयासों में शहरों में रहने वाले वन्यजीवों को भी शामिल करना जरूरी हो गया है। हमें इन नए पर्यावरणीय परिस्थितियों के साथ अनुकूलन सीखना होगा ताकि भविष्य में शहरीकरण और जैवविविधता के बीच संतुलन बना रहे।

source – DOWN TO EARTH

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