प्राकृतिक आपदा: केरल और त्रिपुरा में भारी बारिश और बाढ़ से मची तबाही

saurabh pandey
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केरल के वायनाड और त्रिपुरा के विभिन्न हिस्सों में इस समय भारी बारिश और बाढ़ का कहर जारी है। यह तबाही केवल इन दो राज्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के कई हिस्सों में अत्यधिक बारिश और उसके कारण होने वाली आपदाएं सामने आ रही हैं। यह स्थिति न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में बदलते जलवायु और प्रकृति के बिगड़ते संतुलन का संकेत देती है।

भीषण गर्मी से उत्पन्न हुई भारी बारिश:

इस साल की भीषण गर्मी ने धरती को मानो एक भट्टी में तब्दील कर दिया था। तापमान में अत्यधिक वृद्धि के कारण वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया तेज हो गई, जिसका परिणाम भारी बारिश के रूप में सामने आया। जब वातावरण में इतनी अधिक नमी जमा हो जाती है, तो इसका पानी के रूप में बरसना अवश्यंभावी हो जाता है। इस बारिश ने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ केरल के वायनाड, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा जैसे राज्यों में भी कहर बरपाया है।

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का असर:

यह स्पष्ट हो चुका है कि इन प्राकृतिक आपदाओं के पीछे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की बड़ी भूमिका है। जब मौसम में इतना बड़ा बदलाव होता है, तो हमारे वर्तमान बुनियादी ढांचे को इसके सामने टिके रहना मुश्किल हो जाता है। अगर हम भविष्य में अपने बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान नहीं देंगे, तो नुकसान की संभावना और भी बढ़ जाएगी।

बुनियादी ढांचे की असफलता और सुधार की आवश्यकता:

पिछले एक दशक में, अत्यधिक बारिश और बाढ़ के कारण देश में इंफ्रास्ट्रक्चर को सबसे अधिक नुकसान हुआ है। इस बार की बारिश ने भी अभूतपूर्व नुकसान किया है, जिससे देश के आधे से ज्यादा हिस्से प्रभावित हुए हैं। वायनाड में भूस्खलन और त्रिपुरा में बाढ़ ने बड़ी संख्या में लोगों की जान ले ली है और हजारों हेक्टेयर जमीन पर खेती को बर्बाद कर दिया है।

शहरों में बाढ़ की बढ़ती समस्या:

शहरी इलाकों में बाढ़ का सबसे बड़ा कारण जलमार्गों का अवरुद्ध होना और खराब ड्रेनेज सिस्टम है। पहले शहरों में इतनी बारिश नहीं होती थी, लेकिन अब बदलते मौसम के कारण शहरी इलाकों में भी भारी बारिश हो रही है, जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो रही है। हमें अपने शहरों के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने की सख्त जरूरत है, ताकि ऐसी आपदाओं से निपटा जा सके।

अनियंत्रित विकास और प्रकृति के साथ छेड़छाड़:

यह सच है कि विकास के नाम पर हमने प्रकृति के साथ खूब छेड़छाड़ की है। अनियंत्रित विकास, वनों की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन इसका प्रमुख कारण है। इस छेड़छाड़ का परिणाम है कि अब हमें प्रकृति का बदला हुआ और आक्रामक स्वरूप देखने को मिल रहा है।

आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम कैसे विकास करें जो पर्यावरण के अनुकूल हो। हमें यह समझना होगा कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की एक सीमा होती है, और अगर हम इसे पार करते हैं, तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने के लिए हमें तैयार रहना होगा। भविष्य में, अगर हम अपने बुनियादी ढांचे और विकास की नीति में पर्यावरण को प्राथमिकता नहीं देंगे, तो यह आपदाएं और भी विनाशकारी होंगी।

अब समय आ गया है कि हम सतर्क हो जाएं और अपने विकास मॉडल पर पुनर्विचार करें। अगर हम पर्यावरण के साथ तालमेल बिठाकर विकास करेंगे, तो हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्थिर भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं। अन्यथा, प्रकृति का यह आक्रोश हमें और भी बड़े संकट में डाल सकता है।

Source- दैनिक जागरण

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