कर्नाटक के जंगलों में हो रहे व्यापक खनन से जुड़ी चिंताओं के बीच, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने संबंधित अधिकारियों से जवाब मांगा है। यह मामला तब उठाया गया जब हाल ही में दक्क्न हेराल्ड में प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि खनन के कारण कर्नाटक के जंगलों पर गंभीर असर पड़ा है।
एनजीटी ने 12 सितंबर 2024 को आदेश जारी किया, जिसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, कर्नाटक के खान और भूविज्ञान विभाग, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण मंत्रालय और बल्लारी के जिला मजिस्ट्रेट सहित अन्य अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि वे इस मामले पर अपना जवाब दें। अगली सुनवाई 5 नवंबर 2024 को दक्षिणी बेंच, चेन्नई में होगी।
खनन के कारण नुकसान:
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 14 वर्षों में कर्नाटक के चार जिलों में खनन के चलते 4,228.81 एकड़ वन भूमि नष्ट हो गई है। बल्लारी जिले ने इस नुकसान का 80 प्रतिशत झेला है, जिससे 3,338.13 एकड़ वन भूमि प्रभावित हुई है। इसके अलावा, 2010 से मार्च 2024 के बीच 60 खनन परियोजनाओं को मंजूरी दी गई, जिसमें से बल्लारी में 39 परियोजनाएं संचालित हो रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश और आईसीएफआरई की जांच:
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) द्वारा की गई जांच में सामने आया है कि 2000 से 2011 के बीच किए गए खनन से 2,199.24 एकड़ जंगल नष्ट हो गया। इसके साथ ही 43.4 वर्ग किलोमीटर (10,724 एकड़) क्षेत्र प्रभावित हुआ है।
2013 में सुप्रीम कोर्ट ने खनन के चलते वन्य प्रजातियों, जैसे सफेद गिद्ध, पीले गले वाले बुलबुल, और चौसिंघा, के विलुप्त होने की बात की थी, जिससे पर्यावरण संरक्षण के लिए कड़े नियम लागू किए गए थे।
वैध और अवैध खनन का प्रभाव:
रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि वैध खनन ने अवैध खनन की तुलना में वनों का दोगुना विनाश किया है। इससे वन्यजीवों और स्थानीय समुदायों पर गंभीर असर पड़ा है। खनन से जुड़ी वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा के मामलों में चार गुना वृद्धि हुई है और कृषि से होने वाली आय को सालाना 200 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
एनजीटी का हस्तक्षेप:
एनजीटी ने इस मामले को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, और खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के उल्लंघन से जुड़ा हुआ माना है। ट्रिब्यूनल ने संबंधित अधिकारियों को आदेश दिया है कि वे इन आरोपों का जवाब प्रस्तुत करें और सुनिश्चित करें कि पर्यावरणीय नियमों का पालन किया जाए।
यह मामला कर्नाटक के जंगलों की सुरक्षा और खनन के पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर उठाए गए महत्वपूर्ण सवालों का केंद्र बन गया है। आगामी सुनवाई इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय को स्पष्ट कर सकती है, जिससे पर्यावरणीय संरक्षण और सतत विकास के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए जा सकते हैं।
कर्नाटक में खनन के चलते जंगलों की बढ़ती तबाही ने एनजीटी को सक्रिय भूमिका निभाने पर मजबूर किया है। रिपोर्टों के अनुसार, खनन की वजह से बड़े पैमाने पर वन भूमि नष्ट हो गई है, और इसने पर्यावरणीय संतुलन को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश और आईसीएफआरई की जांच के बाद, यह स्पष्ट हो चुका है कि वन्य प्रजातियां भी इस विनाश का शिकार हुई हैं।
एनजीटी द्वारा संबंधित अधिकारियों को जवाबदेही की जिम्मेदारी सौंपने के बाद, उम्मीद की जा रही है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सख्त कदम उठाए जाएंगे। खनन के पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर कड़े नियम लागू करने और सतत विकास की दिशा में ठोस नीतिगत बदलाव की आवश्यकता है। आगामी सुनवाई इस बात को तय करेगी कि कर्नाटक के जंगलों की रक्षा और वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या नए दिशा-निर्देश और उपाय लागू किए जाएंगे।
Source- down to earth
चित्र- काल्पनिक