भारत में लाखों मजदूर हर दिन जानलेवा सिलिका युक्त धूल के संपर्क में आते हैं, जो उनकी जिंदगी को खतरे में डालती है। पत्थर काटने, ड्रिल करने, या सीमेंट उद्योग से निकलने वाली इस धूल के कारण फेफड़ों की खतरनाक बीमारी सिलिकोसिस हो सकती है। हाल ही में इंपीरियल कॉलेज लंदन से जुड़े शोधकर्ताओं ने इस गंभीर समस्या पर एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है, जिसके नतीजे ब्रिटिश मेडिकल जर्नल ‘थोरैक्स’ में प्रकाशित हुए हैं।
शोध के मुख्य निष्कर्ष
शोधकर्ताओं के मुताबिक, सिलिका धूल के संपर्क में आने की ‘स्वीकार्य’ सीमा को घटाकर आधा कर देने से सिलिकोसिस के मामलों में काफी कमी आ सकती है। वर्तमान में इस सीमा को 0.1 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक मीटर निर्धारित किया गया है, जबकि अमेरिका में यह सीमा 0.05 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। अध्ययन के अनुसार, यदि भारत में इस सीमा को 0.05 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक मीटर किया जाए, तो सिलिकोसिस के मामलों में 77% की कमी मुमकिन है।
भारत में सिलिकोसिस का खतरा
भारत में खनन, निर्माण, और अन्य उद्योगों में काम करने वाले लाखों श्रमिक सिलिका युक्त धूल के संपर्क में रहते हैं। यह समस्या खासतौर पर उन क्षेत्रों में गंभीर है जहां स्वास्थ्य और सुरक्षा मानकों का पालन नहीं होता। भारतीय उद्योगों में सिलिका युक्त धूल के लिए निर्धारित मानक कई अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक हैं। उदाहरण के लिए, 2019 में भारतीय खदानों में सिलिका युक्त धूल के लिए जोखिम स्तर 0.15 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था, जो यूरोप और अमेरिका के मानकों से काफी ज्यादा है।
सिलिकोसिस की समस्या और उपचार
सिलिकोसिस एक गंभीर बीमारी है जो फेफड़ों के कैंसर और तपेदिक (टीबी) जैसी अन्य समस्याओं का कारण बन सकती है। यह बीमारी लंबे समय तक सिलिका युक्त धूल के संपर्क में रहने से विकसित होती है और इसका इलाज अभी तक उपलब्ध नहीं है। भारत में सिलिकोसिस के मामलों की सटीक संख्या के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन अनुमानित आंकड़े बताते हैं कि देश में करीब 30 लाख खनिकों को इस बीमारी का खतरा है।
मानकों में बदलाव की आवश्यकता
शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि सिलिका धूल के संपर्क में आने की स्वीकृत सीमा को घटाकर 0.05 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक मीटर किया जाए, ताकि सिलिकोसिस और अन्य सिलिका संबंधी बीमारियों के मामलों को कम किया जा सके। इस बदलाव से 1000 खनिकों में 298-344 मामलों को टाला जा सकता है। हालांकि, विकासशील देशों में धूल उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए बेहतर उपायों की कमी है, जो इस समस्या को और बढ़ा रही है।
अंतर्राष्ट्रीय मानक और भारत का दृष्टिकोण
अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, कई यूरोपीय देशों में सिलिका युक्त धूल के संपर्क की स्वीकृत सीमा 0.1 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है, जबकि अमेरिका में यह सीमा 0.05 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। भारत में भी इस सीमा को घटाने की आवश्यकता है ताकि श्रमिकों को सुरक्षित वातावरण मिल सके और सिलिकोसिस जैसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को कम किया जा सके।
सिलिका युक्त धूल के संपर्क में आने के मानकों में बदलाव से भारत में कामकाजी जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है और कई मजदूरों की जान बचाई जा सकती है। यह कदम उद्योगों और नीति निर्माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है, जिसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।
Source- down to earth