भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण परियोजना शुरू की है जिसका उद्देश्य खाद्य पदार्थों में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक की समस्या से निपटना है। इस परियोजना का नाम “उभरते खाद्य संदूषक के रूप में माइक्रो और नैनो प्लास्टिक के लिए मान्य तरीकों की स्थापना और खाद्य मैट्रिक्स में व्यापकता को समझना” रखा गया है। इसे मार्च 2024 में शुरू किया गया था और इसका उद्देश्य भारत में खाद्य सुरक्षा को और मजबूत करना है।
माइक्रोप्लास्टिक की समस्या
माइक्रोप्लास्टिक छोटे प्लास्टिक के कण होते हैं जो 5 मिलीमीटर से कम होते हैं। ये कण हमारे वातावरण में हर जगह मौजूद होते हैं और हमारे खाद्य पदार्थों में भी पहुंच सकते हैं। हाल के वर्षों में, माइक्रोप्लास्टिक की समस्या बढ़ती जा रही है और इसका मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव चिंता का विषय बन गया है। चीनी, नमक, और पानी जैसे दैनिक उपयोग के खाद्य पदार्थों में भी माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है।
परियोजना के उद्देश्य
FSSAI की इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य विभिन्न खाद्य पदार्थों में माइक्रो और नैनो-प्लास्टिक की पहचान और विश्लेषण के लिए मानक प्रोटोकॉल विकसित करना है। इसके अलावा, इस परियोजना का उद्देश्य भारत में इन कणों की व्यापकता और उनके कारण होने वाले जोखिम के स्तर का आकलन करना है।
इस परियोजना में शामिल प्रमुख संस्थान हैं:
सीएसआईआर-भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान, लखनऊ: इस संस्थान का मुख्य कार्य विष विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान करना है। इस परियोजना में, यह संस्थान माइक्रोप्लास्टिक के विश्लेषण के लिए मानक विधियों का विकास करेगा।
आईसीएआर-केंद्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान, कोच्चि: यह संस्थान मत्स्य प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान करता है और इस परियोजना में मत्स्य उत्पादों में माइक्रोप्लास्टिक की जांच करेगा।
बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, पिलानी: यह संस्थान नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी है और इस परियोजना में नैनो-प्लास्टिक के विश्लेषण और उनके प्रभावों पर शोध करेगा।
सुरक्षित भोजन की दिशा में बड़ा कदम
FSSAI का यह कदम भारतीय उपभोक्ताओं के लिए सुरक्षित भोजन की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। माइक्रोप्लास्टिक की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए यह परियोजना न केवल खाद्य सुरक्षा को मजबूत करेगी, बल्कि उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता बढ़ाने में भी सहायक होगी।
FSSAI के अधिकारियों का कहना है कि इस परियोजना के परिणामस्वरूप देश में खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा का सही-सही आकलन हो सकेगा और इससे संबंधित जोखिमों को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी रणनीतियां विकसित की जा सकेंगी।
इस परियोजना के माध्यम से, FSSAI न केवल भारत में खाद्य सुरक्षा के मानकों को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है, बल्कि उपभोक्ताओं को भी सुरक्षित भोजन उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्धता प्रदर्शित कर रहा है। माइक्रोप्लास्टिक से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए यह परियोजना एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है, जो भविष्य में सुरक्षित और स्वस्थ भोजन के प्रति उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ाएगी।
Source- अमर उजाला