माइक्रोप्लास्टिक एक नया संकट

saurabh pandey
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नमक और चीनी में माइक्रोप्लास्टिक: एक नया शोध

हाल ही में एक अध्ययन ने खुलासा किया है कि देश के अधिकांश नमक और चीनी ब्रांडों में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी पाई गई है। अध्ययन के अनुसार, नमक के नमूनों में प्रति किलोग्राम 6.71 से 89.15 माइक्रोप्लास्टिक टुकड़े पाए गए हैं, जबकि चीनी में यह संख्या 11.85 से 68.25 प्रति किलोग्राम तक है। यह जानकारी चिंताजनक है, क्योंकि इससे पता चलता है कि हमारे रोजमर्रा के खाद्य पदार्थ भी प्लास्टिक प्रदूषण से प्रभावित हो चुके हैं।

प्लास्टिक प्रदूषण का बढ़ता खतरा

आज प्लास्टिक हर जगह व्याप्त है। कारखानों से बाजार और फिर घरों तक पहुँचने के बाद भी, प्लास्टिक का कोई न कोई रूप पर्यावरण में मौजूद रहता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, 1950 में प्लास्टिक प्रदूषण की मात्रा 2 मिलियन टन थी, जो 2017 में बढ़कर 350 मिलियन टन तक पहुंच गई। अगले दो दशकों में इस मात्रा के दोगुना होने का अनुमान है। यह स्थिति हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए गंभीर खतरा पेश करती है।

स्वास्थ्य पर प्रभाव

प्लास्टिक प्रदूषण केवल पर्यावरणीय संकट नहीं है, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है। सालाना चार बिलियन टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, जिसमें से एक तिहाई सिंगल-यूज प्लास्टिक होता है। प्लास्टिक की मौजूदगी मिट्टी की उर्वरता को कम करती है, जिससे फसल उत्पादन प्रभावित होता है। जल स्रोतों में प्लास्टिक के छोटे कण पानी को दूषित करते हैं और श्वसन तंत्र के माध्यम से फेफड़ों तक पहुँच सकते हैं। माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक जैसे छोटे प्लास्टिक कण स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को भी बढ़ा सकते हैं।

समाधान की दिशा

माइक्रोप्लास्टिक का यह संकट हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए चिंता का विषय है। इसके समाधान के लिए हमें प्लास्टिक के उपयोग को कम करने और सुरक्षित विकल्प अपनाने की आवश्यकता है। हमें अपने दैनिक जीवन में प्लास्टिक का उपयोग कम करना होगा और खाद्य पदार्थों में प्लास्टिक की मौजूदगी पर सख्त निगरानी रखनी होगी।

माइक्रोप्लास्टिक का संकट एक गंभीर मुद्दा है, जो हमारे जीवन के कई पहलुओं को प्रभावित कर रहा है। इसके समाधान के लिए एक संगठित और व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सरकार, उद्योग और समाज के सभी वर्गों की भागीदारी हो।

माइक्रोप्लास्टिक का संकट न केवल पर्यावरण बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरे का संकेत है। हालिया अध्ययन से पता चलता है कि हमारे रोजमर्रा की खाद्य सामग्री जैसे नमक और चीनी में भी माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है, जो हमारे स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है। प्लास्टिक प्रदूषण की बढ़ती समस्या का सामना करने के लिए, हमें प्लास्टिक के उपयोग में कमी लानी होगी और प्रभावी विकल्पों को अपनाना होगा। सख्त निगरानी और नियंत्रण के साथ-साथ जन जागरूकता भी इस संकट को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। अगर हम अभी कार्रवाई नहीं करते, तो यह समस्या और भी विकराल हो सकती है, जिससे हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य पर दूरगामी असर पड़ सकता है।

Source- dainik jagran

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