माइक्रोप्लास्टिक: सांसों के जरिए दिमाग में पहुंच रहा है प्लास्टिक, स्वास्थ्य के लिए बढ़ता खतरा

saurabh pandey
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पिछले कुछ सालों में माइक्रोप्लास्टिक को लेकर कई चिंताएं उठाई जा चुकी हैं, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसी खोज की है, जो इन चिंताओं को और भी गंभीर बना देती है। हाल ही में किए गए एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि माइक्रोप्लास्टिक हमारे सांस लेने के दौरान हमारे दिमाग तक पहुंच सकता है। यह पहली बार है जब वैज्ञानिकों ने मानव मस्तिष्क के एक महत्वपूर्ण हिस्से, जिसे घ्राण बल्ब (Olfactory Bulb) कहा जाता है, में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी के सबूत पाए हैं। यह घ्राण बल्ब हमारे सूंघने की क्षमता को नियंत्रित करता है, जोकि मस्तिष्क की कार्यप्रणाली के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

माइक्रोप्लास्टिक क्या है?

माइक्रोप्लास्टिक ऐसे छोटे-छोटे प्लास्टिक के कण होते हैं, जिनका आकार 5 मिलीमीटर से भी कम होता है। यह छोटे कण वातावरण में बड़ी मात्रा में मौजूद होते हैं और पानी, हवा और भोजन के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग और इसके टूटने से बने ये कण हमारे शरीर में बिना किसी रोक-टोक के पहुंच रहे हैं। अब यह चिंता का विषय बन गया है कि ये कण मानव स्वास्थ्य के लिए कितना बड़ा खतरा बन सकते हैं।

वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण खोज

हाल ही में किए गए इस अध्ययन में ब्राजील के साओ पाउलो में पोस्टमार्टम किए गए 15 लोगों के दिमाग में से 8 लोगों के मस्तिष्क में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया। इन माइक्रोप्लास्टिक कणों को विशेष रूप से घ्राण बल्ब में पाया गया, जो हमारे मस्तिष्क का वह हिस्सा है जो सूंघने की क्षमता को नियंत्रित करता है।

इस खोज से यह सवाल उठने लगे हैं कि आखिर यह प्लास्टिक हमारे दिमाग में कैसे पहुंच रहा है? वैज्ञानिकों का मानना है कि सांस लेते समय ये कण नाक के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और धीरे-धीरे मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं। इन माइक्रोप्लास्टिक कणों में पॉलीप्रोपाइलीन (Polypropylene) जैसे प्लास्टिक के अंश पाए गए, जोकि आमतौर पर प्लास्टिक की बोतलों, थैले और पैकेजिंग में इस्तेमाल होता है।

मानव स्वास्थ्य पर संभावित प्रभाव

हालांकि माइक्रोप्लास्टिक के दीर्घकालिक प्रभावों पर अभी तक पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है, लेकिन यह निश्चित रूप से चिंता का विषय है। घ्राण बल्ब जैसे संवेदनशील हिस्से में प्लास्टिक का पहुंचना सूंघने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है और साथ ही मस्तिष्क के अन्य कार्यों को भी बाधित कर सकता है। इसके अलावा, माइक्रोप्लास्टिक की वजह से सूक्ष्म सूजन, न्यूरोलॉजिकल समस्याएं और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं।

पर्यावरण में बढ़ता प्लास्टिक प्रदूषण

प्लास्टिक प्रदूषण पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुका है। दुनिया भर में हर साल लाखों टन प्लास्टिक कचरा नदियों, समुद्रों और जमीन में जमा होता जा रहा है, जो न केवल पर्यावरण बल्कि जीव-जंतुओं और मनुष्यों के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है। प्लास्टिक का यह कचरा धीरे-धीरे टूटकर माइक्रोप्लास्टिक में बदल जाता है, जो हवा और पानी के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है।

क्या हैं समाधान के उपाय?

प्लास्टिक प्रदूषण की इस समस्या से निपटने के लिए सरकारों, उद्योगों और आम जनता को एकजुट होकर ठोस कदम उठाने की जरूरत है। प्लास्टिक के उपयोग को कम करने और पुनर्चक्रण की प्रक्रिया को बढ़ावा देना इसका सबसे प्रभावी समाधान हो सकता है। इसके साथ ही, माइक्रोप्लास्टिक के स्वास्थ्य पर प्रभावों को समझने के लिए और अधिक शोध और अध्ययन की आवश्यकता है, ताकि इस समस्या से निपटने के लिए उचित कदम उठाए जा सकें।

माइक्रोप्लास्टिक के दिमाग में पहुंचने की यह खोज बेहद चिंताजनक है और यह इस बात का संकेत है कि हमें प्लास्टिक प्रदूषण को गंभीरता से लेना होगा। यह न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी बड़ा खतरा बनता जा रहा है। आने वाले समय में अगर हम प्लास्टिक के उपयोग और इसके कचरे को नियंत्रित नहीं कर पाए तो यह समस्या और भी विकराल रूप धारण कर सकती है। हमें प्लास्टिक के प्रति अपनी निर्भरता को कम करने और इसे रोकने के उपायों पर ध्यान देना होगा, ताकि हम और हमारी आने वाली पीढ़ियाँ एक स्वस्थ और सुरक्षित जीवन जी सकें।

source- down to earth

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