संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2021-2030 को पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्बहाली का दशक घोषित किए जाने के साथ, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक प्रयास तेज हो गए हैं। वृक्षारोपण एक लोकप्रिय रणनीति के रूप में उभर कर सामने आया है, लेकिन इसके सीमित प्रभावी परिणाम और मोनोकल्चर प्रवृत्ति ने विशेषज्ञों के बीच आलोचना का सामना किया है। पर्यावरणविदों का मानना है कि यह दृष्टिकोण कार्बन पृथक्करण और जैव विविधता विकास के लिए अपेक्षित से कम प्रभावी सिद्ध हो सकता है।
भारत में वन संरक्षण की चुनौतियाँ
भारत में वन संरक्षण की स्थिति गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है, जिनमें अतिक्रमण, आजीविका के लिए वनों पर निर्भरता और गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि की क्षति प्रमुख हैं। देश ने वन क्षेत्र के विस्तार और क्षरित वनों के पुनर्बहाल के प्रति प्रतिबद्धता जताई है, लेकिन अधिक सूक्ष्म और पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील रणनीतियों की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
वन संरक्षण का महत्व
वन जैव विविधता संरक्षण, जलवायु परिवर्तन शमन, आजीविका समर्थन, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ, और सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक महत्व के लिए आवश्यक हैं। भारत में वनस्पतियों की 47,000 और जंतुओं की 81,000 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जो इसे महत्त्वपूर्ण जैव विविधता हॉटस्पॉट बनाते हैं। वनों का महत्व जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में भी है, क्योंकि ये कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, और देश ने 2030 तक 2.5 से 3 बिलियन टन CO2 समतुल्य अतिरिक्त कार्बन सिंक का सृजन करने का संकल्प किया है।
प्रमुख चुनौतियाँ
वन क्षेत्र में कमी, मानव-वन्यजीव संघर्ष, वृक्षारोपण बनाम संरक्षण, विधायी खामियाँ और न्यायिक हस्तक्षेप, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, आक्रामक प्रजातियों और जैव विविधता की हानि, वित्तपोषण एवं संसाधन आवंटन का मुद्दा, और सिकुड़ते वन गलियारे प्रमुख चुनौतियाँ हैं। विकास परियोजनाओं, खनन गतिविधियों और कृषि विस्तार के कारण वन क्षेत्र में लगातार कमी आ रही है। मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएँ बढ़ रही हैं, और मोनोकल्चर वृक्षारोपण जैव विविधता को नुकसान पहुँचा सकता है।
वन संरक्षण को बढ़ाने के उपाय
वन संरक्षण को बढ़ाने के लिए एकीकृत भूदृश्य प्रबंधन दृष्टिकोण, वन निगरानी में तकनीकी एकीकरण, समुदाय-केंद्रित संरक्षण मॉडल, हरित वित्त और बाज़ार-आधारित संरक्षण तंत्र, शहरी वानिकी और हरित अवसंरचना, वन प्रशासन को सुदृढ़ करना और क्षमता निर्माण, संवहनीय वन-आधारित आजीविका, क्षरित वनों और पारिस्थितिकी गलियारों की पुनर्बहाली, कानूनी और नीतिगत सुधार, स्वदेशी बीज बैंक, और ड्रोन-सीडिंग जैसी पहलें आवश्यक हैं।
उत्तराखंड में वन पंचायतों और वन अधिकार अधिनियम के तहत सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों जैसे सफल सामुदायिक वन प्रबंधन मॉडल को सुदृढ़ किया जाना चाहिए। इन मॉडलों ने वन पुनर्जनन और जैव विविधता संरक्षण में उल्लेखनीय सफलता दिखाई है। महाराष्ट्र के मेंधा लेखा गाँव ने 1,800 हेक्टेयर वन क्षेत्र का प्रभावी प्रबंधन किया है, जिससे वन क्षेत्र और स्थानीय आय में वृद्धि हुई है।
वन संरक्षण और पुनर्बहाली के लिए एक सशक्त कानूनी ढाँचे और व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है। यह न केवल जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को संरक्षित करेगा, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और स्थानीय समुदायों की आजीविका को संवहनीय बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। भारत में वनों की सुरक्षा और पुनर्बहाली के लिए समर्पित प्रयास और नीतियाँ आवश्यक हैं, ताकि वनों का महत्व और उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ संरक्षित रह सकें।
भारत के वन संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए एक समग्र और बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है। इसमें एकीकृत भूदृश्य प्रबंधन, तकनीकी एकीकरण, समुदाय-केंद्रित संरक्षण, और संवहनीय वन-आधारित आजीविका जैसे पहल शामिल हैं। वन निगरानी में उन्नत तकनीकों का उपयोग, हरित वित्त और बाज़ार-आधारित तंत्र, और शहरी वानिकी को बढ़ावा देने से भी वन संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हो सकती है।
कानूनी और नीतिगत सुधार, क्षरित वनों और पारिस्थितिकी गलियारों की पुनर्बहाली, स्वदेशी बीज बैंकों का निर्माण, और वनाग्नि से निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। वित्तपोषण और संसाधन आवंटन में सुधार, साथ ही, वन प्रशासन को सुदृढ़ करना और क्षमता निर्माण पर ध्यान देना आवश्यक है। इस सबके लिए वन संरक्षण और पुनर्बहाली के लिए एक सशक्त कानूनी ढांचे की आवश्यकता है।
भारत में वनों के संरक्षण और पुनर्बहाली की दिशा में किए गए ये प्रयास न केवल जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को संरक्षित करने में सहायक होंगे, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और स्थानीय समुदायों की आजीविका को संवहनीय बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
source and data – Dristi IAS