महामारी का असर : बच्चों में वजन की कमी

saurabh pandey
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कोरोना महामारी के दौरान भारत में बच्चों के जन्म के समय वजन में चिंताजनक कमी देखी गई है। महामारी के दौरान जन्म लेने वाले बच्चों का वजन औसतन 11 ग्राम कम पाया गया, और इन बच्चों की संख्या महामारी से पहले के बच्चों से तीन प्रतिशत अधिक रही।

महामारी काल में तीन प्रतिशत अधिक कमजोर बच्चे जन्में “

कम वजन वाले बच्चों का बढ़ता संकट

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, जन्म के समय 2.5 किलोग्राम से कम वजन वाले बच्चों को ‘कम वजन’ श्रेणी में रखा जाता है। ऐसे लगभग 95 प्रतिशत बच्चे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में पैदा हो रहे हैं, जिनमें से आधे से अधिक भारत और दक्षिण एशिया में हैं।

अमेरिका की नोट्रे डेम यूनिवर्सिटी का एक अध्ययन, जो कम्युनिकेशन मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित हुआ, ने महामारी के दौरान कम वजन वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि को उजागर किया है। अप्रैल 2020 से अप्रैल 2021 के बीच, दो लाख से अधिक शिशुओं का विश्लेषण किया गया, जिसमें से 12,000 का जन्म महामारी के दौरान हुआ था।

शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि नमूने का उपयोग करके किए गए इस अध्ययन से भारत में कोरोना महामारी से प्रभावित जन्म परिणामों का पता चला है। अध्ययन में पाया गया कि महामारी के दौरान कम वजन वाले शिशुओं की व्यापकता दर 20 प्रतिशत रही, जबकि महामारी से पहले यह दर 17 प्रतिशत थी।

ग्रामीण और वंचित समुदायों पर प्रभाव

अध्ययन ने यह भी पाया कि महामारी के दौरान पैदा हुए बच्चों में कम वजन का जोखिम दोगुना था। महामारी से प्रभावित बच्चों की एक बड़ी संख्या ग्रामीण क्षेत्रों और सामाजिक रूप से वंचित समुदायों में देखी गई। हालांकि, सबसे अमीर घरों के बच्चे भी इस समस्या से प्रभावित हुए।

दीर्घकालिक प्रभाव

कम वजन के साथ पैदा होने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि से उनके विकास पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे बच्चे अक्सर स्कूल जाने के लिए संघर्ष करते हैं और उस क्षमता को विकसित नहीं कर पाते, जिसे अक्सर मानव पूंजी कहा जाता है।

इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि कोरोना महामारी ने न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था को प्रभावित किया, बल्कि नवजात शिशुओं के जन्म वजन पर भी गंभीर प्रभाव डाला है। यह स्थिति आने वाले वर्षों में बच्चों के विकास और देश की मानव पूंजी पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकती है।

सरकार और स्वास्थ्य संगठनों को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि बच्चों के स्वस्थ्य विकास को सुनिश्चित किया जा सके और उन्हें एक उज्ज्वल भविष्य प्रदान किया जा सके।

Source- अमर उजाला ब्यूरो

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