लखनऊ: ध्वनि प्रदूषण पर अंकुश की दिशा में कार्रवाई के नाम पर कागजों तक सीमित

saurabh pandey
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लखनऊ में ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए किए गए उपायों की वास्तविकता पर सवाल उठ रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की दिशा-निर्देशों के बावजूद, जमीनी स्तर पर सुधार न होने के चलते स्थिति बेहद चिंताजनक बनी हुई है।

रियल टाइम एंबिएंट नाइस मॉनिटरिंग स्टेशनों की स्थिति

लखनऊ में कुल 10 रियल टाइम एंबिएंट नाइस मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित किए गए हैं, जिनकी निगरानी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा की जाती है। इनमें से 8 स्थानों पर दिखाए गए आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं। इनमें से 2 स्थानों पर मॉनिटरिंग उपकरण लंबे समय से बंद पड़े हैं, और इनका डेटा भी अधूरा या गलत है।

साइलेंस जोन की वास्तविकता पर सवाल

लखनऊ के इसाबेला थोंबर्न आईटी कॉलेज में ध्वनि मॉनिटरिंग टर्मिनल लगाया गया है, लेकिन इसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुख्य सर्वर पर “मौन क्षेत्र” या “साइलेंस जोन” के बजाय “आवासीय श्रेणी” में दर्शाया गया है। मौन क्षेत्र के मानक के अनुसार दिन में 50 डेसिबल और रात में 40 डेसिबल से अधिक ध्वनि की अनुमति नहीं है, लेकिन आईटी कॉलेज के बाहर दिन के समय शोर स्तर 80 डेसिबल से भी अधिक पहुंच जाता है।

मुख्य सर्वर पर साइलेंस जोन की अनदेखी

सीपीसीबी की वेबसाइट पर लखनऊ के तीन प्रमुख स्थान – आईटी कॉलेज, एसजीपीजीआई और गोमती नगर लोहिया हॉस्पिटल – “साइलेंस जोन” के बजाय “आवासीय जोन” के रूप में दर्शाए जा रहे हैं। इस पर दिल्ली स्थित सीपीसीबी के वरिष्ठ वैज्ञानिक आदित्य शर्मा का कहना है कि यह मुद्दा उनके ध्यान में नहीं आया था, और वे इसे सुधारने की दिशा में काम करेंगे।

नगर निगम और पुलिस की जिम्मेदारी पर सवाल

लखनऊ उच्च न्यायालय में अधिवक्ता व विधि सलाहकार दुर्गेश कुमार शुक्ल ने सवाल उठाया है कि नगर निगम ने साइलेंस जोन के तहत उचित बोर्ड क्यों नहीं लगाए? क्या शोर मचाने पर कोई कार्रवाई की गई? क्या राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस संबंध में कोई जागरूकता अभियान चलाया?

लखनऊ में ध्वनि प्रदूषण की समस्या को नियंत्रण में लाने के लिए उठाए गए कदम प्रभावी नहीं रहे हैं। मॉनिटरिंग स्टेशनों की अनुपस्थित या गलत जानकारी, साइलेंस जोन की अनदेखी, और संस्थानों की लापरवाही से स्थिति में सुधार की बजाय और भी बिगड़ती नजर आ रही है। इन समस्याओं के समाधान के लिए प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि लखनऊ में ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके और नागरिकों को एक शांतिपूर्ण जीवन की सुविधा मिल सके।

source- down to earth

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