केरल के वायनाड में हाल ही में हुए भारी भूस्खलन के पीछे जलवायु परिवर्तन का बड़ा हाथ बताया जा रहा है। दो सप्ताह पहले हुए इस भूस्खलन ने 231 लोगों की जान ले ली और यह जलवायु परिवर्तन के कारण 10 प्रतिशत अधिक गंभीर हो गया है, जैसा कि भारत, स्वीडन, अमेरिका और ब्रिटेन के 24 शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आया है।
अध्ययन के निष्कर्ष
अध्ययन के अनुसार, वायनाड में मानसून के दौरान दो महीने तक अत्यधिक नम मिट्टी पर एक ही दिन में 140 मिमी से अधिक बारिश हुई, जिससे क्षेत्र बाढ़ और भूस्खलन की चपेट में आ गया। रेड क्रॉस रेड क्रिसेंट क्लाइमेट सेंटर की जलवायु जोखिम सलाहकार माजा वाह्लबर्ग ने कहा कि यह बारिश उस क्षेत्र में हुई जो भूस्खलन के लिए सबसे अधिक संवेदनशील है। जलवायु गर्म होने के साथ-साथ भारी बारिश की संभावना भी बढ़ रही है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (WWA) के शोधकर्ताओं ने उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले जलवायु मॉडल का उपयोग करके वर्षा के स्तर का अनुमान लगाया। अध्ययन में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अगर वैश्विक तापमान 1850-1900 के औसत तापमान से दो डिग्री सेल्सियस अधिक बढ़े, तो वर्षा की तीव्रता में चार प्रतिशत की और वृद्धि हो सकती है। गर्म वातावरण में बढ़ती आर्द्रता भारी बारिश को बढ़ावा देती है, और वायुमंडल की नमी को धारण करने की क्षमता प्रत्येक डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि पर सात प्रतिशत बढ़ जाती है।
अन्य कारक
वायनाड में खनन की वृद्धि और वन क्षेत्र में 62 प्रतिशत की कमी जैसे कारक भूस्खलन के जोखिम को बढ़ा रहे हैं। वनों की कटाई और संवेदनशील पहाड़ियों में खनन भी भूस्खलन के लिए जिम्मेदार कारकों में शामिल हैं। कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के एस अभिलाष ने बताया कि अरब सागर के गर्म होने से घने बादल बन रहे हैं, जिससे केरल में अत्यधिक भारी बारिश हो रही है और भूस्खलन का खतरा बढ़ रहा है।
भविष्य की स्थिति और प्रतिक्रिया
भारत में भूस्खलन की चपेट में आने वाले 30 जिलों में से 10 केरल में हैं, और वायनाड 13वें स्थान पर है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने वायनाड के कुछ हिस्सों में भारी बारिश की चेतावनी देते हुए ऑरेंज अलर्ट जारी किया है। मुख्यमंत्री पी. विजयन ने भीषण भूस्खलन में मारे गए लोगों के परिवारों को 6-6 लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा की है।
यह स्थिति जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को उजागर करती है और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ते जोखिम से निपटने के लिए त्वरित और प्रभावी उपायों की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
वायनाड में हाल ही में हुए भूस्खलन ने जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों को स्पष्ट कर दिया है। भारी बारिश और असामान्य मौसम की स्थिति, जो जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हैं, ने इस क्षेत्र को विनाशकारी भूस्खलन का शिकार बना दिया। अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा की तीव्रता में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, और भविष्य में इससे भी अधिक वृद्धि की संभावना है।
यह भूस्खलन न केवल स्थानीय निवासियों के लिए एक बड़ा संकट है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि बढ़ते तापमान और आर्द्रता के कारण प्राकृतिक आपदाएं और भी अधिक गंभीर हो सकती हैं। वायनाड के मामले में, वनों की कटाई और खनन जैसे मानव-निर्मित कारक भी भूस्खलन के जोखिम को बढ़ाते हैं।
भारत में इस स्थिति के मद्देनजर, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए ठोस नीतियों और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। भारतीय मौसम विभाग की चेतावनियों और सरकार की सहायता योजनाओं के साथ, यह जरूरी है कि हम प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की अपनी क्षमता को मजबूत करें और दीर्घकालिक समाधान खोजें। यह स्थिति जलवायु परिवर्तन के प्रति हमारी संवेदनशीलता और इसके प्रबंधन के लिए त्वरित कार्यवाही की आवश्यकता को दर्शाती है।
Source- दैनिक जागरण