2025 की शुरुआत जलवायु वैज्ञानिकों की उम्मीदों के विपरीत एक अप्रत्याशित जलवायु परिदृश्य के साथ हुई है। जहां ला नीना आमतौर पर वैश्विक तापमान में गिरावट लाने के लिए जाना जाता है, वहीं इस बार हालात बिल्कुल उलट नजर आ रहे हैं।
नवीनतम विश्लेषण के अनुसार, ईआरए5 डेटासेट ने संकेत दिया है कि जनवरी 2025 अब तक के सबसे गर्म जनवरी महीनों में से एक बन सकता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस दौरान औसत तापमान औद्योगिक युग (1850-1900) की तुलना में 1.75 डिग्री सेल्सियस अधिक हो सकता है।
पिछले महीने दुनिया भर में असामान्य गर्मी दर्ज की गई। उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध दोनों में औसत से अधिक तापमान देखने को मिला। विशेषज्ञों का मानना है कि यह संकेत वैश्विक तापमान के एक नए उच्चतम स्तर पर पहुंचने की ओर इशारा करते हैं।
मौसम इतिहासकार एम. हेरेरा द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, 31 जनवरी 2025 को उत्तरी गोलार्ध के जमैका और दक्षिणी गोलार्ध के मेडागास्कर में तापमान ने पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए।
ईआरए5 डेटासेट को यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फॉरकास्टिंग (ईसीएमडब्ल्यूएफ) द्वारा संकलित किया जाता है। यह डेटासेट 1940 से लेकर अब तक के जलवायु परिवर्तनों का विस्तृत रिकॉर्ड रखता है और यह दिखाता है कि पृथ्वी का वातावरण समय के साथ कैसे बदल रहा है। ईसीएमडब्ल्यूएफ, यूरोपीय आयोग के लिए कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) का भी संचालन करता है।

क्यों बढ़ रही है चिंता?
ला नीना के बावजूद जनवरी 2025 में असामान्य गर्मी दर्ज होना वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। आमतौर पर, ला नीना के दौरान समुद्री सतह का तापमान ठंडा रहता है, जिससे वैश्विक तापमान में गिरावट देखने को मिलती है। लेकिन इस बार स्थिति अलग है, जो जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
- ग्लेशियरों का तेज़ी से पिघलना: हिमालय, आर्कटिक और अंटार्कटिका में बर्फ तेजी से पिघल रही है।
- समुद्र स्तर में बढ़ोतरी: तटीय क्षेत्रों में बाढ़ और भूमि कटाव की घटनाएं बढ़ रही हैं।
- अत्यधिक मौसम घटनाएं: भीषण गर्मी, भारी वर्षा, चक्रवात और सूखे जैसी घटनाओं में तेजी आई है।
- जैव विविधता पर खतरा: कई जीव-जंतु जलवायु परिवर्तन के कारण संकट में हैं।
समाधान और जरूरी कदम
- नवीकरणीय ऊर्जा को प्राथमिकता: कोयला और तेल आधारित ईंधनों की जगह सौर और पवन ऊर्जा को अपनाने की जरूरत है।
- वन संरक्षण और पुनर्वनीकरण: बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण कर कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित किया जा सकता है।
- ऊर्जा दक्षता बढ़ाना: बिजली और पानी की बचत कर ऊर्जा संकट को कम किया जा सकता है।
- सतत विकास नीतियाँ: सरकारों को ऐसे नियम और योजनाएं बनानी होंगी, जो पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास को भी संतुलित करें।
जनवरी 2025 में रिकॉर्डतोड़ गर्मी ने यह साबित कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन अब एक वास्तविक संकट बन चुका है। यदि त्वरित और ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में इसके और भी खतरनाक परिणाम देखने को मिल सकते हैं।