नई दिल्ली। बढ़ता तापमान इंसानों के साथ-साथ ध्रुवीय भालू, पक्षियों, मछलियों, कीट-पतंगों सहित छोटे बड़े अन्य जंगली जानवरों को भी प्रभावित कर रहा है। एक नए अध्ययन में पता चला है कि ऋतुओं और बदलती मौसमी स्थितियों में आ रहा अचानक बदलाव जानवरों की नींद कम कर रहा है जिससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
कम होती है चपलता, होते हैं असामान्य व्यवहार
गर्म व नम दिनों में जानवरों की नींद की मात्रा और गुणवत्ता कम हो जाती है, जबकि ठंडे मौसम, वर्षा और नम रातों में नींद की मात्रा और गुणवत्ता ज्यादा होती है। बढ़ता तापमान नींद के समय में कमी लाता है और साथ ही दिन के समय में जानवरों की चपलता और व्यवहार पर भी असर डालता है। प्रोफेसर वाल्टर अर्न्स्ट का कहना है कि यह अध्ययन दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन का असर सिर्फ पर्यावरण ही नहीं बल्कि जंगली जानवरों के व्यवहार और शारीरिक स्थिति पर भी दिख रहा है।
क्वींस यूनिवर्सिटी बेलफास्ट, यूनिवर्सिटी ऑफ लाइफ साइंसेज और स्वानसी यूनिवर्सिटी से जुड़े शोधकर्ताओं की इस अध्ययन के नतीजे ‘नेचर प्रोसीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसायटी बी: बायोलॉजिकल साइंसेज’ में प्रकाशित हुए हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इंसानों की तरह जानवरों के लिए भी बेहतर नींद जरूरी है। पर्याप्त और बेहतर नींद उन्हें शारीरिक तौर पर स्वस्थ बनाए रखने में मदद करती है, साथ ही यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यावश्यक है। पर्याप्त नींद न लेने से उसका प्रभाव लंबे समय तक देखा गया। कम नींद लेने वाले जानवर समय से पहले ही दुबले और उम्रदराज हो गए।
इस तरह का सबसे लंबा और विस्तृत अध्ययन
शोधकर्ताओं के अनुसार इस बारे में बहुत सीमित जानकारी है कि पर्यावरण जंगली जानवरों की नींद को कैसे प्रभावित करता है। ऐसे में क्वींस यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में दुनिया भर के 30 वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन का उद्देश्य यह समझना था कि कैसे मौसम और जलवायु में आ रहे बदलाव जानवरों की नींद को प्रभावित कर रहे हैं।
जंगली जानवरों की नींद को लेकर किया यह अब तक का सबसे लंबा और विस्तृत अध्ययन है। इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने दुनियाभर के 30 जंगली सूचियों की नींद और मौसम की जानकारी एकत्रित की। इससे उन्हें यह समझने में मदद मिली कि कैसे तापमान, आर्द्रता, वर्षा और वायुमंडलीय दबाव नींद की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।