जलवायु परिवर्तन से सांस की बीमारियों का खतरा

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जलवायु परिवर्तन और बढ़ते वायु प्रदूषण से निपटने के लिए समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। समय रहते उचित कदम उठाने से हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित पर्यावरण सुनिश्चित कर सकते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में अप्रत्याशित बढ़ोतरी से धरती पर 2050 तक ओजोन का स्तर बढ़ सकता है। अमेरिका में किए गए शोध के अनुसार हवा में बढ़ा ओजोन का स्तर इसकी गुणवत्ता को खराब करेगा। इससे सांस लेने वाली नलियों में सूजन हो सकती है और दमा की शिकायत बढ़ सकती है।

शोध के मुख्य बिंदु

अगले तीन दशकों में ओजोन का स्तर बढ़ने से वायु गुणवत्ता होगी खराब। ओजोन के स्तर में बढ़ोतरी के कारण हवा की गुणवत्ता में गिरावट होगी, जो सांस संबंधी बीमारियों का प्रमुख कारण बनेगा।

प्रमुख प्रभाव: शोधकर्ताओं ने बताया कि गर्मियों में वायुमंडलीय ओजोन का स्तर 1.3 गुना बढ़ सकता है, जिससे हवा की गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ेगा।

स्वास्थ्य पर प्रभाव: बढ़ते ओजोन के कारण हवा में ओजोन की मात्रा बढ़ने से फेफड़ों पर असर होगा और सांस लेने वाली नलियों में सूजन हो सकती है। दमा मरीजों के लिए यह समस्या और गंभीर हो सकती है।

प्रदूषित क्षेत्रों में अधिक होगी मात्रा

अत्यधिक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में असल तापमान बढ़ने के साथ ओजोन के स्तर में वृद्धि की संभावना भी दोगुनी हो सकती है। आमतौर पर पृथ्वी की सतह पर ओजोन परत सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाव का काम करती है, लेकिन सतह के नजदीक ओजोन की मात्रा बढ़ने से स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इससे नाइट्रोजन ऑक्साइड्स सहित वायु प्रदूषक बढ़ते हैं।

निवारण के उपाय

प्राकृतिक समाधान: वायु प्रदूषण को कम करने के लिए वृक्षारोपण और हरित क्षेत्र बढ़ाने पर जोर देना चाहिए।

प्रौद्योगिकी का उपयोग: साफ-सुथरी ऊर्जा स्रोतों का उपयोग और वाहनों से उत्सर्जन को कम करने वाली तकनीकों को बढ़ावा देना चाहिए।

नीति निर्माण: सरकारों और स्थानीय प्रशासन को कड़े पर्यावरणीय मानकों को लागू करना चाहिए।

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