जलवायु परिवर्तन: तपती रातों से नींद में खलल , स्वास्थ्य पर असर

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नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन के कारण न केवल दिन में बल्कि रात में भी तापमान बढ़ रहा है। इसके कारण न केवल लोगों की नींद प्रभावित हो रही है, बल्कि उनके स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

क्लाइमेट सेंट्रल और क्लाइमेट ट्रेंड्स के एक नए विश्लेषण में यह बात सामने आई है। क्लाइमेट सेंट्रल की “स्लीपलेस नाइट्स” शीर्षक वाली रिपोर्ट के अनुसार, 2018 से 2023 के बीच, पंजाब, जम्मू और कश्मीर, आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के शहरों में जलवायु परिवर्तन के कारण साल में लगभग 50 से 80 अतिरिक्त रातें दर्ज की जा सकती हैं, जब तापमान 25 सेल्सियस की सीमा को पार कर जाता है।

सबसे ज्यादा बदलाव मेट्रो शहर मुंबई में देखने को मिले हैं, जहां 65 अतिरिक्त गर्म रातें दर्ज की गई हैं। वहीं, पश्चिम बंगाल और असम के शहरों में सबसे ज्यादा गर्म रातें रही हैं, जिनमें 80 से 86 अतिरिक्त गर्म रातें दर्ज की गईं।

रिपोर्ट के अनुसार, रात में शरीर का तापमान कम न होने से स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंच रहा है। इससे रक्तचाप और मधुमेह का स्तर बढ़ने के साथ ही लोगों का स्वभाव भी आक्रामक हो रहा है। यहां तक कि पाचन संबंधी समस्याएं भी बढ़ रही हैं। धीरे-धीरे यह मांसपेशियों की संरचना को भी प्रभावित कर रहा है। बच्चों और बुजुर्गों में इससे मौत का खतरा बढ़ रहा है।

कहां और क्या असर…

रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण कई शहरों में 15 से 50 अतिरिक्त दिन ऐसे रहे, जब न्यूनतम तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहा। पर्यटन नगरी जयपुर में 19 अतिरिक्त गर्म रातें रही। गंगटोक में 54, दार्जिलिंग में 31, शिमला में 30 और मैसूर में 26 अतिरिक्त दिन न्यूनतम तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहा।

इसका असर और भी ज़्यादा हुआ है। जलपाईगुड़ी, गुवाहाटी, सिलचर, डिब्रूगढ़ और सिलीगुड़ी जैसे शहरों में हर साल औसतन 80 से 86 अतिरिक्त रातें ऐसी देखी गईं, जब तापमान 25 डिग्री से ऊपर पहुंच गया।

ऊंची इमारतें और कंक्रीट रात में गर्मी को बाहर नहीं निकलने देते

विश्लेषण के अनुसार, शहरों में ऊंची इमारतें और कंक्रीट रात में अतिरिक्त गर्मी को बाहर नहीं निकलने देते। ऐसे में तापमान ठंडा नहीं हो पाता और रात में भी गर्मी और लू जारी रहती है।

डॉ. रॉक्सी मैथ्यू कहते हैं कि पेड़ों वाली हरी-भरी जगहें रात में गर्मी को तेज़ी से बाहर निकाल सकती हैं, लेकिन भारत में प्राकृतिक क्षेत्रों की तुलना में ऊंची इमारतों पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है। इसके अलावा, अव्यवस्थित शहरी नियोजन और घटिया निर्माण गर्मी को और बढ़ा देते हैं।

जलवायु परिवर्तन का अर्थ क्या है?

जलवायु परिवर्तन का मतलब है दीर्घकालिक रूप से मौसम के औसत पैटर्न में परिवर्तन। यह परिवर्तन प्राकृतिक प्रक्रियाओं और मानव गतिविधियों के परिणामस्वरूप होता है। प्राकृतिक कारणों में ज्वालामुखी विस्फोट, सूर्य की गतिविधियों में परिवर्तन और पृथ्वी की कक्षीय परिभ्रमण शामिल हैं। मानव गतिविधियों में मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधनों का जलना, वनों की कटाई और औद्योगिकीकरण शामिल हैं, जो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को बढ़ाते हैं।

जलवायु परिवर्तन के परिणाम

ग्लोबल वार्मिंग: वैश्विक तापमान में वृद्धि, जिसे ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है, जलवायु परिवर्तन का सबसे प्रमुख परिणाम है। इससे ध्रुवीय बर्फ पिघल रही है और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है।

अत्यधिक मौसम की घटनाएं: जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़, सूखा, हीटवेव और तूफान जैसी अत्यधिक मौसम की घटनाएं अधिक सामान्य और तीव्र हो रही हैं।

पानी की कमी: ग्लेशियरों के पिघलने और मौसम के पैटर्न में बदलाव के कारण कई क्षेत्रों में पानी की कमी हो रही है।

जैव विविधता का नुकसान: पारिस्थितिकी तंत्र और प्रजातियों के प्राकृतिक आवास बदल रहे हैं, जिससे कई प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ गया है।

कृषि पर प्रभाव: मौसम में परिवर्तन से फसल उत्पादन प्रभावित हो रहा है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर संकट उत्पन्न हो सकता है।

स्वास्थ्य पर प्रभाव: हीटवेव, बाढ़ और जलजनित बीमारियों की वृद्धि से मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

आर्थिक प्रभाव: जलवायु परिवर्तन से बुनियादी ढांचे को नुकसान, कृषि उत्पादकता में कमी और आपदा राहत लागतों में वृद्धि होती है, जिससे अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ता है।

समुद्र के स्तर में वृद्धि: ध्रुवीय बर्फ के पिघलने और महासागरों के गर्म होने से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है।

समुद्री जीवन पर प्रभाव: समुद्र के अम्लीकरण और तापमान में वृद्धि से समुद्री जीवों और प्रवाल भित्तियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

मानवीय प्रवास: जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्याओं के कारण लोग अपने निवास स्थान छोड़ने के लिए मजबूर हो सकते हैं, जिससे पर्यावरणीय शरणार्थियों की संख्या में वृद्धि हो रही है।

जलवायु परिवर्तन के ये परिणाम न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि मानव समाज के लिए भी गंभीर चुनौतियां पेश कर रहे हैं। इनसे निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर समन्वित प्रयासों और टिकाऊ विकास की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है।

सौरभ पाण्डेय

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Source- अमर उजाला नेटवर्क

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