जादव मोलाई पायेंग, जिन्हें “मोलाई” के नाम से भी जाना जाता है, असम के एक पर्यावरणविद् और वन संरक्षक हैं, जिन्होंने अकेले दम पर एक बंजर भूमि को घने जंगल में बदल दिया। उनके इस अतुलनीय प्रयास ने उन्हें “वनमैन फ़ॉरेस्ट” के नाम से प्रसिद्धि दिलाई है।
प्रारंभिक जीवन
जादव का जन्म 1963 में असम के जोरहाट जिले में हुआ था। बचपन से ही उन्होंने प्रकृति से एक गहरा जुड़ाव महसूस किया और पेड़ों तथा वन्य जीवन के महत्व को समझा।
मोलाई का जंगल
1979 में, महज 16 साल की उम्र में, जादव ने ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर स्थित एक बंजर और कटावग्रस्त क्षेत्र को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया। उन्होंने बांस के पौधे लगाने से शुरुआत की और धीरे-धीरे उस क्षेत्र में विविध प्रकार के पेड़ और पौधे लगाए। लगभग 30 वर्षों के कठोर परिश्रम के बाद, उन्होंने 550 हेक्टेयर क्षेत्र में एक घना जंगल तैयार कर दिया, जिसे अब “मोलाई का जंगल” के नाम से जाना जाता है।
योगदान और सम्मान
जादव का यह जंगल न केवल पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह कई वन्य जीवों का आवास भी बन चुका है, जिसमें हाथी, गैंडे, हिरण, और कई प्रकार के पक्षी शामिल हैं। उनके इस अद्वितीय प्रयास को देखते हुए, उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
जादव मोलाई पायेंग का जीवन हमें यह सिखाता है कि एक व्यक्ति के प्रयास से भी बड़े बदलाव संभव हैं। उनके समर्पण और प्रेम ने यह साबित कर दिया कि यदि हम प्रकृति की देखभाल करें तो प्रकृति भी हमें भरपूर लाभ देती है।
जादव मोलाई पायेंग आज भी अपने जंगल की देखभाल करते हैं और पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए प्रेरित करते हैं।
कार्य
साल 1979 में असम में आई भयंकर बाढ़ ने उनके जन्मस्थान के आसपास बड़ी तबाही मचाई थी। बाढ़ का ही असर था कि आसपास की पूरी जमीन पर सिर्फ मिट्टी और कीचड़ दिखता था। साधारण से दिखने वाले जादव ने अकेले उस खाली जमीन को घने जंगल में बदल दिया। यह सब तब शुरू हुआ जब एक दिन जादव ब्रह्मपुत्र नदी स्थित द्वीप अरुणा सपोरी लौट रहे थे। उस समय जाधव ने बालिगांव जगन्नाथ बरुआ आर्य विद्यालय से कक्षा 10 की परीक्षा दी थी। रेतीली और सूनसान जमीन में सैकड़ों सांपों को बेजान मरता देख वह चौंक गए। द बेटर इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक दिन जादव ने आसपास के बड़े लोगों से पूछा, ‘अगर इन्हीं सांपों की तरह एक दिन हम सब मर गए तो वे (बड़े लोग) क्या करेंगे?’ उनकी इस बात पर सभी बड़े-बुजुर्ग लोग हंसने लगे और उनका मजाक उड़ाने लगे, लेकिन वह (जादव) जानते थे कि उन्हें इस भूमि को हरा-भरा बनाना है। अप्रैल 1979 में इस तबाही को देख जादव ने (जब वह महज 16 साल के थे) मिट्टी और कीचड़ से भरे द्वीप को एक नया जीवन देने के बारे में ठान लिया। इस बारे में जादव ने गांव वालों से बात की। गांव वालों ने उन्हें पेड़ उगाने की सलाह के साथ-साथ 50 बीज और 25 बांस के पौधे दिए। जादव ने बीज बोए और उनकी देखरेख की। उसी का परिणाम है कि आज 36 साल बाद उन्होंने अपने दम पर एक जंगल खड़ा कर दिया। जोराहाट में कोकिलामुख के पास स्थित जंगल का नाम मोलाई फॉरेस्ट उन्हीं के नाम पर पड़ा। इसमें जंगल के आसपास का 1360 एकड़ का क्षेत्र शामिल है। हालांकि इस जंगल को बनाना आसान नहीं था। जादव दिन-रात पौधों में पानी देते। यहां तक कि उन्होंने गांव से लाल चींटियां इकठ्ठी कर उन्हें सैंड बार (कीचड़) में छोड़ा। अंत में उन्हें प्रकृति से उपहार मिला और जल्द ही खाली पड़ी जगह पर वनस्पति और जीव-जंतुओं की कई श्रेणियां पाई जाने लगीं। इनमें लुप्त होने की कगार पर खड़े एक सींग वाले गैंडे और रॉयल बंगाल टाइगर भी शामिल हैं।