केरल अपने प्राकृतिक सौंदर्य और विविधता के लिए प्रसिद्ध है। हालांकि, हाल के वर्षों में राज्य को एक गंभीर कृषि संकट का सामना करना पड़ रहा है। धान, जो केरल के खाद्यान्न उत्पादन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, उसकी पैदावार में निरंतर गिरावट देखी जा रही है। क्या बदलते मौसम और बढ़ता तापमान इसके लिए जिम्मेदार हैं? आइए इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर एक नज़र डालते हैं।
बदलते मौसम का प्रभाव
केरल में मानसून का महत्व किसी से छिपा नहीं है। यहां की खेती मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर करती है, विशेष रूप से धान की फसल के लिए। परंतु, हाल के वर्षों में मानसून की अनियमितता ने किसानों के लिए कई चुनौतियां पैदा कर दी हैं। कभी बारिश का समय पर न आना, तो कभी अधिक या कम बारिश होना – इन सभी का धान की पैदावार पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
आंकड़ों में गिरावट
केरल के डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक्स एंड स्टेटिस्टिक्स के ताजे आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में धान के उत्पादन में बड़ी गिरावट आई है। वर्ष 2020-21 में धान का कुल बोया गया क्षेत्र जहां दो लाख हेक्टेयर से अधिक था, वह 2023-24 में घटकर 116,951 हेक्टेयर रह गया। यह करीब 43% की गिरावट दर्शाता है। इसी तरह, धान की पैदावार में भी लगभग 48% की गिरावट आने का अनुमान है, जो राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।
वैज्ञानिक अनुसंधान और निष्कर्ष
केरल के पलक्कड़ जिले के कोलेंगोड क्षेत्र में अमृता विश्व विद्यापीठम से जुड़े शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया है, जिसमें धान की पैदावार में आ रही गिरावट के कारणों को समझने की कोशिश की गई है। इस अध्ययन में यह पाया गया कि पिछले दो वर्षों में मानसून के आगमन में दो सप्ताह की देरी और तापमान में हो रहे बदलावों ने किसानों को पारंपरिक कृषि पद्धतियों में बदलाव करने पर मजबूर कर दिया है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि बारिश की मात्रा में आई कमी और तापमान में हुई बढ़ोतरी ने धान की फसल पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। अध्ययन से यह भी पता चला है कि न्यूनतम तापमान में हो रहे इजाफे से दिन और रात के तापमान के बीच का अंतर घट गया है, जिससे धान के पौधे की वृद्धि और उपज पर असर पड़ा है।
किसान और धान – बदलते रुझान
बदलते मौसम और कृषि क्षेत्र में आती चुनौतियों के कारण केरल के किसान धीरे-धीरे धान की खेती से मुंह मोड़ रहे हैं। कई किसानों ने अन्य फसलों की ओर रुख कर लिया है, जो कम पानी में भी अच्छी उपज दे सकती हैं। हालांकि, धान की गिरती पैदावार का असर राज्य की खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ सकता है, क्योंकि धान यहां के लोगों का प्रमुख आहार है।
भविष्य की चुनौतियां और समाधान
केरल में धान की पैदावार को बढ़ाने और कृषि क्षेत्र को स्थिर रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है। सरकार और कृषि वैज्ञानिकों को मिलकर ऐसे उपाय विकसित करने चाहिए, जो बदलते मौसम के साथ सामंजस्य बिठा सकें। किसानों को नई तकनीकों और बेहतर फसल प्रबंधन की जानकारी दी जानी चाहिए, ताकि वे इन चुनौतियों का सामना कर सकें।
केरल में धान की गिरती पैदावार एक गंभीर समस्या है, जो राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर रही है। बदलते मौसम, अनियमित मानसून और तापमान में हो रहे बदलाव इसके प्रमुख कारण हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए किसानों, वैज्ञानिकों और सरकार को मिलकर काम करना होगा।
अगर सही कदम उठाए गए, तो न केवल केरल की धान की पैदावार में वृद्धि हो सकती है, बल्कि किसानों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। समय रहते अगर इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट और भी गहरा हो सकता है।
Source- down to earth