भारत का जलवायु वित्त में महत्वपूर्ण योगदान: विकसित देशों की अपेक्षाओं से आगे

saurabh pandey
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जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में भारत ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। 2022 में भारत ने जलवायु वित्त के तहत 1.28 बिलियन डॉलर का योगदान दिया, जो कई विकसित देशों के योगदान से अधिक है। इस योगदान से भारत ने वैश्विक स्तर पर अपनी जलवायु प्रतिबद्धता को और मजबूत किया है।

यूके के थिंक टैंक ओडीआई और ज्यूरिख क्लाइमेट रेजिलिएंस अलायंस के हालिया विश्लेषण में यह सामने आया है कि केवल 12 विकसित देशों ने 2022 में अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त में अपनी उचित हिस्सेदारी के लिए प्रतिबद्धता जताई। इनमें नॉर्वे, फ्रांस, लक्ज़मबर्ग, जर्मनी, स्वीडन, डेनमार्क, स्विटज़रलैंड, जापान, नीदरलैंड, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम और फ़िनलैंड शामिल हैं। हालांकि, अमेरिका और कुछ अन्य विकसित देशों ने अपनी हिस्सेदारी के मामले में कमी दिखाई है।

इस विश्लेषण के मुताबिक, अमेरिका ने अपनी अपेक्षित हिस्सेदारी का योगदान नहीं किया, और ऑस्ट्रेलिया, स्पेन, कनाडा और ब्रिटेन ने भी अपेक्षित स्तर पर योगदान नहीं किया। इससे साफ है कि वैश्विक जलवायु संकट से निपटने में विकसित देशों की भूमिका अभी भी पूरी तरह से साकारात्मक नहीं रही है।

भारत का 1.28 बिलियन डॉलर का योगदान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जलवायु संकट के खिलाफ ठोस प्रयासों का प्रतीक है। इससे न केवल भारत बल्कि पूरे विकासशील देशों की जलवायु वित्त में हिस्सेदारी को बल मिला है।

याद दिलाते चलें कि 2009 में कोपेनहेगन में हुए सीओपी 15 जलवायु सम्मेलन में विकसित देशों ने 2020 तक विकासशील देशों को सालाना 100 बिलियन डॉलर का वित्तीय सहयोग देने का वादा किया था। लेकिन, अब तक यह वादा पूरा नहीं हो पाया है। यही वजह है कि भारत और अन्य विकासशील देश, विकसित देशों की जिम्मेदारी बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं।

इस बीच, चीन, ब्राज़ील और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने भी जलवायु वित्त में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह सभी प्रयास मिलकर वैश्विक जलवायु संकट से निपटने में सहायक साबित हो रहे हैं। भारत का योगदान और वैश्विक जलवायु वित्त प्रयासों में उसकी भूमिका, जलवायु संकट से लड़ने के लिए महत्वपूर्ण कदम साबित हो रही है।

भारत ने 2022 में जलवायु वित्त के क्षेत्र में 1.28 बिलियन डॉलर का योगदान देकर वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण उदाहरण पेश किया है। यह योगदान न केवल भारत की जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है, बल्कि कई विकसित देशों की अपेक्षाओं को भी चुनौती देता है। अमेरिका और अन्य प्रमुख विकसित देशों द्वारा अपेक्षित योगदान की कमी के बावजूद, भारत और अन्य विकासशील देशों की सक्रिय भागीदारी जलवायु संकट से निपटने के लिए आवश्यक है। इस स्थिति में, वैश्विक समुदाय को मिलकर काम करने की आवश्यकता है ताकि जलवायु वित्त के वादों को पूरा किया जा सके और वैश्विक जलवायु संकट का प्रभावी समाधान खोजा जा सके।

source- dainik jagran

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