देश के एक प्रतिष्ठित विज्ञान संस्थान के कुछ होनहार छात्रों ने प्लास्टिक कचरे की समस्या का स्थायी समाधान ढूंढने के लिए एक अद्वितीय तकनीक विकसित की है। यह नई तकनीक, जिसे “एंजाइम-आधारित डिग्रेडेशन सिस्टम” नाम दिया गया है, प्लास्टिक को जल्दी और प्रभावी ढंग से नष्ट करने में सक्षम है, जिससे पर्यावरण पर इसके हानिकारक प्रभाव को कम किया जा सकेगा।
इस परियोजना का नेतृत्व करने वाले एक छात्र ने बताया कि यह तकनीक प्लास्टिक के अणुओं को तोड़ने के लिए विशेष प्रकार के एंजाइम्स का उपयोग करती है। जहाँ सामान्य रूप से प्लास्टिक को नष्ट होने में सैकड़ों साल लग जाते हैं, वहीं इस तकनीक से इसे प्राकृतिक रूप से और तेजी से विघटित किया जा सकता है।
“हमने देखा कि प्लास्टिक प्रदूषण एक बहुत बड़ी समस्या है और इसका समाधान खोजना आवश्यक है,” छात्र ने कहा। “हमारी तकनीक विशेष रूप से उन प्लास्टिक उत्पादों के लिए प्रभावी है जो लैंडफिल साइट्स में जमा होते हैं और बिना विघटित हुए सैकड़ों सालों तक पड़े रहते हैं।”
इस परियोजना को पर्यावरण संरक्षण संगठनों और विज्ञान समुदाय से व्यापक समर्थन मिला है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह तकनीक व्यावसायिक रूप से सफल होती है, तो यह प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या को हल करने में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है।
छात्रों की इस पहल ने न केवल विज्ञान जगत में हलचल मचाई है, बल्कि आम जनता के बीच भी जागरूकता बढ़ाई है। अब सभी की नजरें इस बात पर हैं कि इस तकनीक को और कैसे विकसित किया जा सकता है ताकि इसे बड़े पैमाने पर लागू किया जा सके और हमारे पर्यावरण को प्लास्टिक के दुष्प्रभावों से बचाया जा सके।
भारतीय छात्रों द्वारा विकसित की गई यह नई तकनीक प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि इसे सफलतापूर्वक व्यावसायिक रूप से लागू किया जा सका, तो यह न केवल हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रखने में मददगार साबित होगी, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी एक स्वच्छ और हरा-भरा वातावरण सुनिश्चित करेगी। इस प्रकार की नवाचारपूर्ण पहलों से यह स्पष्ट होता है कि युवा मस्तिष्क हमारे ग्रह को बचाने के लिए कितनी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। अब हमें बस इंतजार है कि इस तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाया जाए और इसके प्रभाव से हमारा पर्यावरण बेहतर हो सके।
Source- अमर उजाला