राष्ट्रमंडल महासचिव पैट्रिशिया स्कॉटलैंड ने कहा है कि भारत जलवायु संकट के लिए जिम्मेदार नहीं है, लेकिन उसे अपने विकास के दौरान 19वीं सदी से पश्चिम की प्रदूषणकारी प्रथाओं की नकल नहीं करनी चाहिए। एक साक्षात्कार में स्कॉटलैंड ने कहा कि भारत एक नए, स्वच्छ और सुरक्षित विकास मॉडल का उदाहरण पेश कर सकता है, जो वैश्विक दक्षिण के लिए आशा की किरण बन सकता है।
जलवायु संकट का सामना
स्कॉटलैंड ने कहा, “भारत एक विकासशील देश है। जलवायु संकट पैदा न करने के बावजूद, भारत अत्यधिक गर्मी, बाढ़ और तीव्र मानसून सहित गंभीर जलवायु परिणामों से जूझ रहा है। उसे इस पर कार्रवाई करने की जरूरत है।” उन्होंने यह भी कहा कि भारत के कुछ शहरों में गर्मी के स्तर, बाढ़ और मानसून की तीव्रता बढ़ रही है, जिससे लोग परेशान हैं।
पेरिस जलवायु समझौता
आपको बता दें कि पेरिस में 2015 में हुई संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में देशों ने जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से बचने के लिए वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की प्रतिबद्धता जताई थी। वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों, मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन की तेजी से बढ़ती सांद्रता के कारण पृथ्वी की वैश्विक सतह का तापमान पहले ही लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है।
स्वच्छ और सुरक्षित विकास मॉडल
स्कॉटलैंड ने कहा, “भारत को पश्चिम के विकास मॉडल का अनुसरण नहीं करना चाहिए, जो विफल रहा और जलवायु संकट का कारण बना। भारत एक स्वच्छ और सुरक्षित विकास मॉडल का उदाहरण पेश कर सकता है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत के पास अवसर है कि वह अपने विकास के दौरान पर्यावरण को संरक्षित करने के नए तरीकों को अपनाए और दुनिया के लिए एक मिसाल कायम करे।
राष्ट्रमंडल महासचिव का यह बयान एक महत्वपूर्ण समय पर आया है जब दुनिया भर के देश जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में अपनी भूमिका पर विचार कर रहे हैं। भारत के पास अपने विकास पथ को पुनः निर्धारित करने और जलवायु संकट के समाधान में एक प्रमुख भूमिका निभाने का एक अनूठा अवसर है।
Source and data- अमर उजाला