एंटीबायोटिक्स का बढ़ता प्रतिरोध: स्वास्थ्य के लिए गंभीर चेतावनी

saurabh pandey
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भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन ने देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक गंभीर चेतावनी दी है। इस अध्ययन के अनुसार, भारत में एंटीबायोटिक्स के अत्यधिक और अनियोजित उपयोग के कारण कीटाणुओं में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही है, जो कि संक्रमण के उपचार में बड़ी बाधा बन सकता है।

अध्ययन की पृष्ठभूमि

ICMR की वार्षिक रिपोर्ट 2023 में यह बताया गया है कि अस्पतालों में पाई जाने वाली कुछ प्रमुख कीटाणु, जैसे क्लेबसिएला निमोनिया और एसिनेटोबैक्टर बाउमानी, एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी हो गए हैं। यह रिपोर्ट विभिन्न अस्पतालों में किए गए अध्ययनों के आधार पर तैयार की गई है, जहां रक्त संक्रमण और अन्य गंभीर बीमारियों के मरीजों का इलाज किया जा रहा है।

प्रतिरोध की समस्या

रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि ICU में भर्ती मरीजों में एंटीबायोटिक इमिपेनम के प्रति प्रतिरोध पाया गया है। इसके साथ ही, अन्य रोगाणु जैसे स्टैफिलोकोकस ऑरियस और एंटरोकोकस फेसियम भी एंटीबायोटिक ऑक्सासिलिन और वैनकॉमाइसिन के प्रति प्रतिरोधी पाए गए हैं। इससे साफ होता है कि ये कीटाणु अस्पतालों में होने वाले संक्रमण का प्रमुख कारण बन रहे हैं।

शोध की महत्वपूर्ण बातें

डॉ. कामिनी वालिया, जो इस अध्ययन की वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं, ने कहा कि पिछले सात वर्षों में आउटपेशेंट डिपार्टमेंट (OPD), इंटेंसिव केयर यूनिट (ICU), और वार्डों में मरीजों में एंटीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोध की दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। विशेष रूप से, पिपेरेसिलिन-टैजोबैक्टम और कार्बापेनम जैसी दवाओं के प्रति प्रतिरोध बढ़ा है, जिससे ई. कोली बैक्टीरिया के कारण होने वाले रक्त संक्रमण के इलाज में समस्या हो रही है।

आंकड़े और तथ्य

रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में एसिनेटोबैक्टर बाउमानी में कार्बापेनम के प्रति प्रतिरोधक क्षमता 88 प्रतिशत दर्ज की गई। यह आंकड़ा एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि एंटीबायोटिक्स के प्रभावी उपयोग में कमी से संक्रमण का इलाज कठिन हो जाएगा और इससे रोगियों के लिए खतरा बढ़ जाएगा।

समाधान की दिशा में कदम

  • एंटीबायोटिक्स का जिम्मेदार उपयोग: चिकित्सकों और स्वास्थ्य संगठनों को एंटीबायोटिक्स के उपयोग में सतर्कता बरतनी चाहिए। अव्यवस्थित और अनावश्यक एंटीबायोटिक प्रिस्क्रिप्शन को रोकने के लिए प्रशिक्षण और दिशा-निर्देश आवश्यक हैं।
  • शोध और विकास: नई दवाओं और उपचार विधियों का विकास आवश्यक है। शोधकर्ताओं को प्रतिरोधकता की समस्या को समझने और इसके समाधान के लिए नई दवाओं पर काम करने की आवश्यकता है।
  • जन जागरूकता: आम जनता को एंटीबायोटिक्स के सही उपयोग के बारे में जागरूक करना भी जरूरी है। लोगों को समझाना होगा कि एंटीबायोटिक्स का उपयोग कब और कैसे करना है।
  • नियामक उपाय: सरकार को एंटीबायोटिक्स के वितरण पर नियंत्रण करने और उनके अनधिकृत उपयोग को रोकने के लिए प्रभावी नियम लागू करने की जरूरत है।

ICMR का यह अध्ययन हमें चेतावनी देता है कि यदि हमने एंटीबायोटिक्स के उपयोग को नियंत्रित नहीं किया, तो हम एक ऐसी स्थिति में पहुंच सकते हैं जहां सामान्य संक्रमण भी जानलेवा साबित हो सकते हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र के सभी हिस्सों को मिलकर इस समस्या का सामना करना होगा, ताकि हम एंटीबायोटिक प्रतिरोध के खिलाफ एकजुट होकर लड़ सकें और अपने समाज के स्वास्थ्य को सुरक्षित रख सकें।

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