सर्दी की शुरुआत के साथ ही यमुना और हिंडन नदियों में प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ रहा है। हाल ही में ओखला बैराज के पास 26 सितंबर को लिए गए पानी के सैंपल में पाया गया कि यमुना का पीएच स्तर 7.51 है, जबकि कई अन्य हानिकारक तत्वों की मात्रा भी चिंताजनक रूप से बढ़ी हुई है। छठ पर्व के नजदीक आते ही यमुना में सफेद झाग की मोटी परत दिखाई दे रही है, जो स्थानीय लोगों के लिए चिंता का विषय बन गई है।
पानी में प्रदूषण के स्तर में वृद्धि
अगस्त में हुई अच्छी बारिश के कारण नदी में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ा था, लेकिन बारिश के थमने के साथ ही यमुना के पानी में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी), पीएच और कुल घुलित ठोस (टीडीएस) के स्तर में वृद्धि हुई है। यूपीपीसीबी के अनुसार, 26 सितंबर को यमुना में लिए गए सैंपल में जलस्तर 100.38 था और बीओडी का स्तर मानकों से कई गुना अधिक पाया गया है।
यमुना में फेकल कोलीफॉर्म का स्तर भी अत्यधिक बढ़ गया है, जो 49,00,000 एमपीएन प्रति 100 मिलीलीटर तक पहुंच गया है। यह मानक स्तर 2,500 यूनिट से कई गुना अधिक है। इस स्थिति से यह स्पष्ट होता है कि यमुना का पानी पीने और स्नान करने के लिए अत्यंत हानिकारक है।
हिंडन नदी में भी बढ़ा प्रदूषण
हिंडन नदी में भी प्रदूषण के स्तर में वृद्धि हुई है। यूपीपीसीबी के आंकड़ों के अनुसार, 26 सितंबर को लिए गए सैंपल में पीएच लेवल 7.51, बीओडी लेवल 21.0 और टीडीएस लेवल 389.0 पाया गया, जो मानकों से काफी अधिक है।
स्वास्थ्य पर खतरा
विशेषज्ञों का कहना है कि यमुना और हिंडन के प्रदूषित पानी का सेवन या स्नान करना गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है, जैसे हैजा, टाइफाइड बुखार, डायरिया, अल्सर, हेपेटाइटिस, किडनी खराब होना, कैंसर, और अन्य गंभीर बीमारियां।
यमुना और हिंडन की गंभीर प्रदूषण स्थिति हमें यह याद दिलाती है कि जल शुद्धता बनाए रखना और प्रदूषण नियंत्रण के लिए प्रभावी कदम उठाना अत्यंत आवश्यक है। छठ पर्व के अवसर पर नदी के पानी की स्थिति सुधारने के लिए सरकार और संबंधित विभागों को तत्परता से कार्य करने की आवश्यकता है। अब समय है कि हम इस संकट की गंभीरता को समझें और ठोस कदम उठाएं ताकि हमारी नदियां और पर्यावरण सुरक्षित रह सकें।
यमुना और हिंडन नदियों में बढ़ते प्रदूषण का स्तर न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है। हाल के आंकड़े बताते हैं कि यमुना के पानी में हानिकारक तत्वों की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि हुई है, जिससे महामारी जैसे स्वास्थ्य संकट उत्पन्न हो सकते हैं। इस संदर्भ में, सरकारी और स्थानीय एजेंसियों को तत्काल प्रभाव से प्रदूषण को नियंत्रित करने और जल शुद्धता बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
छठ पर्व के समय, जब बड़ी संख्या में लोग नदियों में स्नान करते हैं, यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि नदी के पानी की गुणवत्ता में सुधार किया जाए। इसके लिए, निरंतर निगरानी, प्रभावी प्रदूषण नियंत्रण नीतियों, और जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है।
हमें एक ऐसे भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाना होगा जहां हमारी नदियां केवल प्राकृतिक संसाधन न होकर, जीवन और स्वास्थ्य के प्रतीक बन सकें। यदि हम सभी मिलकर प्रयास करें, तो हम नदियों की शुद्धता को बहाल कर सकते हैं और एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण कर सकते हैं।