बढ़ते प्रदूषण से गर्भ में पल रहे बच्चे का वजन कम हो सकता है

saurabh pandey
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प्रदूषण के बढ़ते स्तर से गर्भवती महिलाओं और उनके गर्भस्थ शिशुओं पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। एम्स में हुए शोध के अनुसार, लंबे समय तक प्रदूषित वातावरण में रहने वाली महिलाओं के गर्भ में पल रहे बच्चों का वजन सामान्य से कम पाया गया है। यह समस्या हर साल अक्टूबर के महीने से बढ़ने लगती है, जब दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक सीमा तक पहुंच जाता है।

प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य पर प्रभाव

विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषित क्षेत्र में रहने वाली गर्भवती महिलाएं नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और ओजोन जैसे खतरनाक रसायनों को सांस के जरिए शरीर में लेती हैं। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिससे उसका विकास प्रभावित होता है। इसके अलावा, वायु प्रदूषण में मौजूद रसायन शरीर में हॉर्मोनल असंतुलन पैदा कर सकते हैं और पोषक तत्वों की आपूर्ति को बाधित कर सकते हैं।

प्रदूषण से होने वाले लक्षण और बीमारियां

प्रदूषण के कारण लोगों में आंखों और नाक में जलन, छींक आना, सिर दर्द और सांस लेने में दिक्कत जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। विशेष रूप से, गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों में श्वसन संबंधी समस्याएं, हाइपोग्लाइसीमिया (कम रक्त शर्करा), हाइपोथर्मिया (शरीर का कम तापमान) और विकास संबंधी समस्याएं देखी गई हैं।

बढ़ते प्रदूषण से संबंधित चिंताएं

हर साल सर्दियों के दौरान दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ जाता है, जिससे छोटे बच्चे, बुजुर्ग और सांस या हृदय रोगों से पीड़ित मरीजों की स्थिति और खराब हो जाती है। एम्स में वायु प्रदूषण और उसके स्वास्थ्य प्रभावों पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें डॉक्टरों ने कहा कि प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के इलाज के बजाय जागरूकता बढ़ाकर प्रदूषण के स्तर को कम करने की दिशा में काम किया जाना चाहिए।

आईसीएमआर का शोध

आईसीएमआर के एक शोध में पाया गया कि दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के स्तर में वृद्धि के दौरान अस्पतालों की इमरजेंसी में मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा होता है। इन मरीजों को कई बार आईसीयू में भर्ती करने की भी जरूरत पड़ती है।

प्रदूषण का प्रभाव गर्भस्थ शिशुओं से लेकर सामान्य वयस्कों तक सभी पर पड़ रहा है। यदि प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं और भी बढ़ सकती हैं। जागरूकता और सक्रिय उपायों से इस समस्या का समाधान खोजा जा सकता है।

बढ़ते वायु प्रदूषण का प्रभाव गर्भस्थ शिशुओं से लेकर वयस्कों तक सभी पर गंभीरता से पड़ रहा है, जिससे शिशुओं का वजन कम होना, श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ना जैसी समस्याएं उभर रही हैं। यदि इस समस्या को हल करने के लिए समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले समय में स्वास्थ्य संकट और गहरा सकता है। प्रदूषण के स्तर को कम करने और इसके दुष्प्रभावों के प्रति जागरूकता बढ़ाकर ही इस गंभीर समस्या से निपटा जा सकता है, ताकि आने वाली पीढ़ी को स्वस्थ वातावरण मिल सके।

Source- amar ujala

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