दिल्ली में वाहनों से होने वाले प्रदूषण में पिछले कुछ वर्षों में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है। एक हालिया अध्ययन में सामने आया है कि वर्ष 2018 से 2022 के बीच वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन में 8% की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि दिल्ली की वायु गुणवत्ता के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बनती जा रही है। वहीं, दूसरी ओर धूल से होने वाले प्रदूषण में 6% की कमी दर्ज की गई है। इस संदर्भ में दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने वायु प्रदूषण पर एक समीक्षा बैठक की, जिसमें उन्होंने अधिकारियों को दीर्घकालिक और अल्पकालिक समाधान खोजने के निर्देश दिए।
वाहनों से होने वाले प्रदूषण में बढ़ोतरी के कारण
वाहनों से होने वाले प्रदूषण का बढ़ना कई कारणों पर आधारित है। दिल्ली में तेजी से बढ़ते वाहनों की संख्या, सार्वजनिक परिवहन के उचित प्रबंधन की कमी, और यातायात में जाम की समस्या इसके प्रमुख कारण हैं। इस बढ़ते प्रदूषण का प्रमुख हिस्सा निजी और सार्वजनिक वाहनों से उत्पन्न हो रहा है, जिससे शहर की हवा दिन-ब-दिन खराब हो रही है।
उपराज्यपाल ने इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान देते हुए अधिकारियों को आदेश दिया है कि वे इस समस्या का तात्कालिक समाधान ढूंढ़ें। उन्होंने खास तौर पर डीटीसी (दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन) की बसों द्वारा होने वाले प्रदूषण पर भी चिंता जताई, जिनमें 48% से कम यात्री होते हैं। खाली बसें न केवल सड़क पर अधिक जगह घेरती हैं बल्कि यातायात को बाधित भी करती हैं, जिससे वाहनों से उत्सर्जन और बढ़ जाता है। इस स्थिति को सुधारने के लिए उपराज्यपाल ने परिवहन विभाग से बसों के रूट और समय को तर्कसंगत बनाने के लिए कहा है ताकि बसों का बेहतर उपयोग हो सके और वाहनों से होने वाला प्रदूषण कम किया जा सके।
वायु प्रदूषण के घटक: पीएम 10 और पीएम 2.5
वर्ष 2022 तक पीएम 10 और पीएम 2.5 के स्तर में थोड़ी कमी आई है। जहां 2018 में इन कणों का योगदान वायु प्रदूषण में 26% था, वहीं 2022 तक यह घटकर 20% रह गया है। हालांकि, वाहनों से होने वाले उत्सर्जन में बढ़ोतरी चिंता का विषय बनी हुई है। 2018 में वाहनों से उत्सर्जन 39% था, जो 2022 तक बढ़कर 47% हो गया है। यह आंकड़ा बताता है कि वायु प्रदूषण में वाहनों का प्रमुख योगदान है।
उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने इस मुद्दे को हल करने के लिए सड़कों और फुटपाथों की मरम्मत पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि शहर की सड़कों की स्थिति और फुटपाथों की कमी के कारण प्रदूषण में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। सड़कों की खराब स्थिति के कारण धूल उठती है, जो वायु में प्रदूषक कणों की मात्रा बढ़ा देती है।
उद्योग और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन
औद्योगिक क्षेत्रों में कचरे के निपटान और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन भी वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारक है। दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्रों में अव्यवस्थित तरीके से कचरे का निपटान हो रहा है, जिससे वायु गुणवत्ता और खराब हो रही है। उपराज्यपाल ने दिल्ली स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (DSIIDC) को सड़कों की मरम्मत, फुटपाथों की कवरेज और औद्योगिक क्षेत्रों में कचरे के निपटान के लिए एक व्यापक योजना बनाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने सभी संबंधित विभागों को निर्देश दिया है कि वे उपराज्यपाल सचिवालय को साप्ताहिक रिपोर्ट प्रस्तुत करें ताकि काम की निगरानी हो सके।
दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता
दिल्ली जैसे बड़े महानगर में वायु प्रदूषण की समस्या का हल केवल तात्कालिक उपायों से नहीं हो सकता, इसके लिए दीर्घकालिक समाधान आवश्यक हैं। सार्वजनिक परिवहन प्रणाली का सुधार, वाहनों की संख्या को नियंत्रित करना, और सड़कों के बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करना इसके प्रमुख कदम हो सकते हैं। उपराज्यपाल ने अधिकारियों से आग्रह किया है कि वे दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाएं और समस्या के स्थायी समाधान खोजें।
वायु प्रदूषण दिल्ली के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है, खासकर वाहनों से होने वाले उत्सर्जन के बढ़ते स्तर के कारण। हालांकि पीएम 10 और पीएम 2.5 के स्तर में कमी आई है, लेकिन वाहनों से उत्पन्न प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। दिल्ली की सड़कों, सार्वजनिक परिवहन और कचरे के प्रबंधन में सुधार के बिना इस समस्या का समाधान संभव नहीं है। उपराज्यपाल द्वारा उठाए गए कदम और दीर्घकालिक रणनीतियों का पालन करना आवश्यक है ताकि आने वाले समय में दिल्ली की हवा को साफ और स्वच्छ बनाया जा सके।
Source- अमर उजाला