बढ़ता वायु प्रदूषण (Air Pollution) प्रतिरक्षा प्रणाली को शरीर का दुश्मन बना रहा है। हाल के अध्ययनों से पता चला है कि लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने से ल्यूपस नामक बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। ल्यूपस एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जो शरीर के कई अंगों को प्रभावित करती है। इसमें शरीर का अपना प्रतिरक्षा तंत्र, जो उसे बीमारियों से बचाता है, शरीर का दुश्मन बन जाता है।
शोधकर्ताओं ने कहा है कि यह बीमारी त्वचा, किडनी, जोड़ों, रक्त, मस्तिष्क, हृदय और फेफड़ों को प्रभावित करती है। हालांकि ल्यूपस के लक्षण दूसरी बीमारियों से काफी मिलते-जुलते हैं, लेकिन इसकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है। जिन लोगों में आनुवंशिक जोखिम अधिक था और जो वायु प्रदूषण के संपर्क में अधिक थे, उनमें ल्यूपस विकसित होने की संभावना सबसे अधिक थी।
12 वर्षों का अध्ययन
शोधकर्ताओं ने यू.के. बेबीबैंक द्वारा एकत्रित 4,59,815 लोगों के स्वास्थ्य संबंधी डेटा का विश्लेषण किया है। लगभग 12 वर्षों तक ल्यूपस से पीड़ित 399 लोगों का अध्ययन करने के बाद, प्रदूषण के सूक्ष्म कण पीएम 2.5, जीएम10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और नाइट्रिक ऑक्साइड जैसे प्रदूषकों के स्तर को भी मापा गया।
अजन्मे बच्चों के लिए खतरनाक
JAMA नेटवर्क ओपन में प्रकाशित एक अन्य शोध अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि गर्भावस्था के दौरान अजन्मे बच्चों का वायु प्रदूषण के संपर्क में आना किशोरावस्था में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ ने भी खुलासा किया है कि वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से बच्चे मानसिक रूप से कमजोर हो रहे हैं। इससे उनकी बौद्धिक और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता प्रभावित हो रही है।
सख्त नियमों की मांग
चीन की हुआजोन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता याओहुआ तियान के अनुसार, हमारा शोध कार्य इस बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देता है कि वायु प्रदूषण ऑटोइम्यून बीमारियों को कैसे प्रभावित करता है। अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार, वायु प्रदूषण को कम करने और ल्यूपस के जोखिम को सीमित करने के लिए सख्त नियम बनाने की आवश्यकता है। समय की मांग है कि वायु प्रदूषण के खतरों की पहचान की जाए और उन्हें दूर करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं।
वायु प्रदूषण न केवल हमारे पर्यावरण के लिए खतरा है, बल्कि यह हमारी स्वास्थ्य प्रणालियों को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। इसके खतरों को समझना और उन्हें कम करने के लिए ठोस कदम उठाना अत्यंत आवश्यक है, ताकि भविष्य की पीढ़ियाँ स्वस्थ और सुरक्षित रह सकें।
source- अमर उजाला समाचार पत्र