थाईलैंड ने विकसित देशों से प्लास्टिक कचरे के आयात पर प्रतिबंध लगाने का बड़ा फैसला किया है, जिससे वैश्विक प्लास्टिक कचरा संकट और भी गंभीर हो गया है। अमेरिका, ब्रिटेन और जापान जैसे देश सालों से अपना प्लास्टिक कचरा थाईलैंड भेज रहे थे, जिसे ‘कचरा उपनिवेशवाद’ कहा जाता है। हालांकि इससे थाईलैंड को कुछ आर्थिक लाभ मिला, लेकिन इसके गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी दुष्प्रभाव भी सामने आए। इसी वजह से थाईलैंड ने 1 जनवरी, 2025 से प्लास्टिक कचरे का आयात पूरी तरह बंद करने की घोषणा कर दी है।
भारत में प्लास्टिक कचरे की गंभीर स्थिति
भारत में भी प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। 2018 में भारत सरकार ने प्लास्टिक कचरे के आयात पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन इसके बावजूद अवैध रूप से यह प्रक्रिया जारी है। भारत में पहले से ही घरेलू प्लास्टिक कचरे की मात्रा अत्यधिक है और बाहरी कचरे के आगमन से यह समस्या और विकराल होती जा रही है।
प्लास्टिक कचरे के कारण देश में गंभीर पर्यावरणीय खतरे उत्पन्न हो रहे हैं। इसके निपटान की उचित व्यवस्था न होने के कारण जल, मिट्टी और वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। खुले में प्लास्टिक जलाने से हानिकारक रसायन और जहरीली गैसें निकलती हैं, जो न केवल पर्यावरण बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी घातक साबित हो रही हैं।
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव
भारत में प्लास्टिक कचरे के बढ़ते स्तर से कई गंभीर खतरे उत्पन्न हो रहे हैं:
जल प्रदूषण: प्लास्टिक कचरा नदियों और समुद्रों में बहकर जलीय जीवों के लिए घातक साबित हो रहा है।
वायु प्रदूषण: खुले में प्लास्टिक जलाने से जहरीली गैसें निकलती हैं, जो सांस संबंधी बीमारियों का कारण बनती हैं।
मिट्टी की गुणवत्ता पर असर: प्लास्टिक अपशिष्ट के कारण मिट्टी की उर्वरता प्रभावित होती है, जिससे कृषि उत्पादकता घट सकती है।
स्वास्थ्य समस्याएँ: प्लास्टिक कचरे से निकलने वाले सूक्ष्म कण हवा और पानी में मिलकर शरीर में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे फेफड़ों की बीमारियाँ, त्वचा रोग और कैंसर जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।
कचरा बीनने वाले समुदायों पर प्रभाव: अनौपचारिक रूप से कचरा बीनने वाले लोग बिना किसी सुरक्षा उपायों के इस खतरनाक कचरे को संभालते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
सरकार के प्रयास और नीतियाँ
सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं:
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016: इस नियम के तहत कचरे को अलग करना और पुनर्चक्रण को अनिवार्य किया गया।
2021 संशोधन: एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध लगाया गया।
स्वच्छ भारत अभियान: इस पहल के तहत प्लास्टिक कचरे के निपटान को लेकर जागरूकता बढ़ाई जा रही है।
वैकल्पिक समाधान: बायोडिग्रेडेबल और पुन: उपयोग योग्य उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
समस्या का समाधान क्या हो?
हालांकि सरकार ने कई कदम उठाए हैं, लेकिन समस्या के समाधान के लिए और अधिक प्रभावी उपाय अपनाने की जरूरत है:
- कड़े नियमों का सख्ती से पालन: अवैध प्लास्टिक कचरे के आयात को पूरी तरह रोकने के लिए निगरानी और कानूनों को और सख्त किया जाए।
- प्लास्टिक के विकल्पों को बढ़ावा: जैव-अपघटनशील (बायोडिग्रेडेबल) उत्पादों और पुन: उपयोग योग्य सामग्रियों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- जन भागीदारी सुनिश्चित करना: लोगों को प्लास्टिक के उपयोग में कमी लाने और पुनर्चक्रण के महत्व को समझाने के लिए जागरूकता अभियान चलाने चाहिए।
- उद्योगों की जवाबदेही तय करना: कंपनियों को उत्पादों के लिए ईको-फ्रेंडली विकल्प अपनाने के लिए बाध्य करना होगा।
- स्थानीय प्रशासन की भूमिका: शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभावी कचरा प्रबंधन प्रणाली विकसित करने की जरूरत है।
प्लास्टिक कचरे की समस्या केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुकी है। थाईलैंड के फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि प्लास्टिक कचरे के वैश्विक व्यापार को नियंत्रित करने की जरूरत है। भारत में भी इस संकट से निपटने के लिए कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। सरकार, उद्योग, और आम जनता—सभी को मिलकर इस दिशा में प्रभावी कदम उठाने होंगे, ताकि पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को बचाया जा सके।