उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए कहा है कि जीवन का अधिकार केवल शारीरिक जीवन से संबंधित नहीं है, बल्कि इसमें ध्वनि प्रदूषण से मुक्ति भी शामिल है। यह निर्णय हरिद्वार के भगवानपुर में नमाज के दौरान लाउडस्पीकर की अनुमति से जुड़े एक मामले में दिया गया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रदूषण फैलाने वाले अपने विचारों और राय को व्यक्त करने के अधिकार का बचाव नहीं कर सकते हैं, खासकर जब यह दूसरों के जीवन को प्रभावित करता है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला हरिद्वार निवासी रईस अहमद की याचिका पर आधारित है। रईस ने 2022 में हरिद्वार मस्जिद में लाउडस्पीकर लगाने की अनुमति के लिए एसडीएम से संपर्क किया था, लेकिन प्रशासन ने अनुमति देने से मना कर दिया। इसके बाद, उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया कि प्रशासन कानून के अनुसार मामले का निपटारा करे और ध्वनि प्रदूषण विनियमन-2000 के अंतर्गत उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
महत्वपूर्ण निर्देश
कोर्ट ने 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए सभी जिलों के पुलिस प्रमुखों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया कि ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित किया जाए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि निजी स्वामित्व वाली ध्वनि प्रणालियों पर परिधीय शोर का स्तर पांच डेसिबल से अधिक नहीं होना चाहिए। सार्वजनिक स्थान पर लाउडस्पीकर या अन्य ध्वनि उपकरणों से शोर का स्तर 10 डेसिबल से अधिक नहीं होना चाहिए। इसके अलावा, रात 10 बजे से सुबह 10 बजे तक सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी प्रकार के संगीत वाद्ययंत्र बजाने की अनुमति नहीं है, सिवाय आपात स्थितियों के।
समाज पर प्रभाव
यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में ध्वनि प्रदूषण के प्रति जागरूकता बढ़ाने में भी सहायक होगा। कोर्ट का यह आदेश सभी नागरिकों को यह याद दिलाता है कि उनका अधिकार तभी सुनिश्चित होता है जब वे दूसरों के अधिकारों का भी सम्मान करें।
उत्तराखंड हाईकोर्ट का यह निर्णय स्पष्ट करता है कि ध्वनि प्रदूषण से मुक्ति न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, बल्कि यह जीवन के अधिकार का एक अभिन्न हिस्सा है। जब हम अपनी आजादी के लिए आवाज उठाते हैं, तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारे कार्यों से दूसरों को कोई परेशानी न हो। इस दिशा में उठाए गए कदमों से हम एक शांत और स्वस्थ समाज की ओर बढ़ सकते हैं।
उत्तराखंड हाईकोर्ट का यह निर्णय ध्वनि प्रदूषण के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण पहल है, जो न केवल कानूनी रूप से बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक प्रासंगिक है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि जीवन का अधिकार केवल शारीरिक अस्तित्व तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य भी शामिल है।
यह निर्णय प्रदूषण के खिलाफ एक सशक्त आवाज है, जो समाज को यह समझाने में मदद करता है कि व्यक्तिगत अधिकारों का उपयोग तब तक सही है जब तक कि यह दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन न करे। ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उठाए गए कदमों से न केवल वातावरण में सुधार होगा, बल्कि यह सभी नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार करेगा।
आखिरकार, यह निर्णय हमें यह याद दिलाता है कि एक स्वस्थ और शांतिपूर्ण समाज की स्थापना के लिए सभी नागरिकों को अपने कर्तव्यों और अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।
Source- dainik jagran