दुनिया जलवायु संकट से निपटने में किसी भी प्रकार की ढील नहीं बरत सकती। संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के आरंभ में ही कुछ ऐसे निर्णय लिए हैं, जो वैश्विक जलवायु प्रयासों को प्रभावित कर सकते हैं। उन्होंने अमेरिका को पेरिस समझौते से बाहर निकालने की प्रक्रिया दोबारा शुरू कर दी और अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त पोषण को रोकने के आदेश दिए।
इसके अलावा, उन्होंने विदेशी सहायता को भी सीमित किया, जिससे विभिन्न स्वास्थ्य और शरणार्थी कार्यक्रमों पर असर पड़ सकता है। इस प्रकार के निर्णयों का जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई पर व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है।
अमेरिका का पेरिस समझौते से बाहर होना: अब आगे क्या?
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क (यूएनएफसीसीसी) के तहत अमेरिका अभी भी औपचारिक रूप से शामिल है। पिछली बार जब ट्रंप प्रशासन ने समझौते से बाहर निकलने की प्रक्रिया शुरू की थी, तो इसे पूरी तरह से लागू होने में एक वर्ष का समय लगा था। 46वें राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 2021 में अमेरिका की भागीदारी फिर से बहाल की थी।
अब, यदि अमेरिका पुनः समझौते से बाहर होता है, तो यह प्रक्रिया कॉप 30 शिखर सम्मेलन तक चल सकती है। नए निर्वाचित अध्यक्ष आंद्रे कोर्रिया डो लागो ने अमेरिका के इस निर्णय पर चिंता व्यक्त की है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि अमेरिका अब भी यूएनएफसीसीसी का सदस्य बना रहेगा।
अमेरिका की जलवायु नीति और वैश्विक प्रभाव
संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलनों में अमेरिका की भूमिका अक्सर विकासशील देशों की मांगों के खिलाफ रही है। अमेरिका ने ऐतिहासिक रूप से क्योटो प्रोटोकॉल के तहत उच्च उत्सर्जन लक्ष्यों का विरोध किया है और हानि व क्षति निधियों को मुआवजे से न जोड़ने का प्रयास किया है।
अमेरिका की वैश्विक स्थिति इसे जलवायु नीति में एक प्रमुख भूमिका देती है:
- वैश्विक वित्तीय प्रणाली पर नियंत्रण: अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय व्यापार का प्रमुख हिस्सा है।
- सैन्य शक्ति: अमेरिका के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है।
- व्यापार प्रभुत्व: अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा आयातक है।
- अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों पर प्रभाव: अमेरिका विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में प्रमुख योगदानकर्ता है।
- संयुक्त राष्ट्र में प्रभाव: अमेरिका संयुक्त राष्ट्र का सबसे बड़ा वित्तीय योगदानकर्ता है।
जलवायु परिवर्तन प्रयासों पर संभावित परिदृश्य
- वैश्विक जलवायु कार्रवाई में गिरावट: अमेरिका के इस निर्णय के बाद अन्य देश भी जलवायु कार्रवाई को धीमा कर सकते हैं।
- शेष विश्व नेतृत्व करेगा: यूरोपीय संघ और चीन जैसे देश आगे आ सकते हैं और जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा दे सकते हैं।
- अमेरिका पर वैश्विक दबाव: अन्य देश अमेरिका पर आर्थिक प्रतिबंध लगा सकते हैं या इसे जवाबदेह ठहराने के प्रयास कर सकते हैं।
अमेरिका का पेरिस समझौते से बाहर होना जलवायु कार्रवाई के लिए एक बड़ा झटका है, लेकिन यह वैश्विक प्रयासों को पूरी तरह बाधित नहीं कर सकता। कई देश अपनी ऊर्जा नीतियों में नवीकरणीय स्रोतों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे जलवायु लक्ष्यों की दिशा में प्रगति जारी रह सकती है। यूरोप में सौर ऊर्जा ने कोयले को पीछे छोड़ दिया है, और चीन ने अपने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को समय से पहले पूरा कर लिया है।
भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों के लिए यह स्थिति जलवायु वित्त पोषण पर प्रभाव डाल सकती है, लेकिन एक संगठित वैश्विक रणनीति से इस संकट का समाधान संभव है। मजबूत अंतरराष्ट्रीय सहयोग और ठोस जलवायु नीतियों के बिना इस चुनौती से निपटना कठिन होगा। जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याएं पहले ही गंभीर हो चुकी हैं, और अब समय आ गया है कि सभी देश एकजुट होकर इस संकट का समाधान निकालें।