हिमाचल प्रदेश में नवंबर में भी ठंड का अहसास नदारद है, और पहाड़ गर्मी से तप रहे हैं। राज्य में तापमान सामान्य से 3-4 डिग्री अधिक बना हुआ है, जो हिमाचल जैसे ठंडे प्रदेश के लिए असामान्य स्थिति है। आमतौर पर सर्दियों में जहां तापमान शून्य से नीचे होता था, इस साल तापमान 24-29 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। न्यूनतम तापमान भी 7-11 डिग्री सेल्सियस के आसपास बना हुआ है। इस अजीबो-गरीब स्थिति ने प्रदेश के लोगों और पर्यावरण, दोनों को ही प्रभावित किया है।
मौसम विभाग के अनुसार, सोलन में तापमान 39 डिग्री, कांगड़ा में 27.6 डिग्री, भूंतर में 30.5 डिग्री और उना में तापमान अब तक का सबसे अधिक दर्ज हुआ है। यहां तक कि ऊंचे इलाकों में भी, जैसे कल्पा, जहां सामान्यतः ठंड का प्रकोप होता है, इस साल तापमान 23.6 डिग्री तक जा पहुंचा। यह 1984 के बाद अब तक का सबसे अधिक तापमान है।
शुष्क अक्तूबर और बारिश की कमी
हिमाचल प्रदेश में अक्टूबर का महीना इस बार बेहद शुष्क रहा। पिछले 123 वर्षों में यह तीसरा मौका है जब अक्टूबर में इतनी कम बारिश हुई है। सामान्यतः इस महीने में 25 मिलीमीटर बारिश होती है, लेकिन इस साल सिर्फ 0.7 मिलीमीटर ही बारिश दर्ज की गई। पहले 1964 में 0.1 और 2003 में 0.3 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई थी। चंबा, हमीरपुर, सोलन, सिरमौर और कुल्लू जैसे जिलों में पूरे महीने सूखा रहा, जिससे खेती और बागवानी पर विपरीत असर पड़ा है।
कृषि और बागवानी पर गहरा असर
मौसम की इस बेरूखी का सीधा असर प्रदेश की कृषि और बागवानी पर पड़ रहा है। तापमान अधिक होने के कारण सेब और अन्य फलों की तुड़ाई 15-20 दिन पहले हो गई है। बारिश न होने के कारण रबी फसलों की बुवाई प्रभावित हुई है, जिसमें गेहूं, मटर, सरसों और चने जैसी फसलें शामिल हैं। कृषि अर्थशास्त्री डॉ. मनोज गुप्ता ने बताया कि बुवाई में देरी से फसल उत्पादन में कमी आ सकती है। इसके साथ ही मौसम की अनियमितता के चलते फसलों और फलों में बीमारियों का प्रकोप बढ़ सकता है, जो किसान और बागवानों के लिए चिंता का विषय है।
पश्चिमी विक्षोभ की कमी और भविष्य की आशा
मौसम विज्ञानी शोभित कटियार का कहना है कि पिछले कुछ महीनों से पश्चिमी विक्षोभ का अभाव रहा है, जिसके कारण हिमाचल में बारिश नहीं हो पा रही है और तापमान सामान्य से अधिक बना हुआ है। उनका अनुमान है कि 7 नवंबर तक यही स्थिति बनी रहेगी, लेकिन 8 नवंबर के बाद हल्की गिरावट देखने को मिल सकती है। 12 नवंबर के बाद चंबा, लाहौल स्पीति और कांगड़ा में हल्की बारिश की संभावना है, जिससे तापमान में और गिरावट आएगी।
पर्यावरण पर दीर्घकालिक प्रभाव
जलवायु परिवर्तन और मौसम के बदलते रुझान का हिमाचल प्रदेश के पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। तापमान में वृद्धि और वर्षा की कमी ने प्राकृतिक संतुलन को हिला दिया है, और आने वाले समय में इसके दीर्घकालिक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।
हिमाचल प्रदेश में इस समय मौसम की असामान्य स्थितियों ने पूरे प्रदेश को प्रभावित किया है। नवंबर महीने में तापमान सामान्य से 3-4 डिग्री अधिक रहना और अक्टूबर में 97 प्रतिशत कम बारिश होना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि जलवायु परिवर्तन के असर हिमाचल में भी महसूस किए जा रहे हैं। कृषि और बागवानी क्षेत्रों को भारी नुकसान हो रहा है, जिससे किसानों और बागवानों के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं।
अगर मौसम की यह बेरूखी बनी रही तो भविष्य में फसलों की पैदावार में गिरावट, जलवायु असंतुलन, और प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ सकता है। हालांकि, आने वाले दिनों में हल्की बारिश की उम्मीद जताई जा रही है, जिससे तापमान में गिरावट और पर्यावरणीय सुधार की संभावना है। यह महत्वपूर्ण है कि प्रदेश में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझते हुए सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के उपायों पर ध्यान दिया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए हिमाचल की प्राकृतिक धरोहर को बचाया जा सके।