हिमाचल प्रदेश की 4.5 हजार करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था को संकट के बादल घेर रहे हैं। बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी ने प्रदेश में सेब की फसल में फैल रहे अल्टरनेरिया रोग के तीन मुख्य कारण बताए हैं। ये कारण हैं – जलवायु परिवर्तन, निर्धारित शेड्यूल के अनुसार छिड़काव का पालन न करना, और पौधों की कमजोरी। विश्वविद्यालय ने इस संबंध में एक रिपोर्ट बागवानी विभाग को सौंप दी है।
सेब सीजन की शुरुआत में बागवानों की मुश्किलें बढ़ गई हैं, खासकर शिमला जिले के रोहड़, कोटखाई, जुब्बल और ठियोग क्षेत्रों में, जहां 70 से 90 प्रतिशत पौधे इस रोग से प्रभावित हैं। इसके अलावा, कुल्लू जिले के आनी और मंडी जिलों के कुछ हिस्सों में भी अल्टरनेरिया का प्रकोप देखा गया है।

विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने इस रोग के नियंत्रण के लिए समय पर छिड़काव की सलाह दी है। उनका कहना है कि छिड़काव को 15 दिन के अंतराल पर दोहराया जाना चाहिए, और समय से पहले छिड़काव नुकसानदायक हो सकता है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि प्री-फर्टिलाइजर का इस्तेमाल और छिड़काव भी नुकसानदायक हो सकता है।
रोग के लक्षण:
- सेब के पत्तों पर भूरे और काले धब्बे दिखने लगते हैं।
- धब्बे गोलाकार गहरे हरे रंग के होते हैं, जो बाद में भूरे और फिर गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं।
- पत्तों का बचा हुआ हिस्सा पीला पड़ने लगता है, और वे समय से पहले गिरने लगते हैं।
- संक्रमित फलों पर भूरे रंग के धब्बे भी दिखते हैं, जो बड़े होकर आपस में जुड़ जाते हैं और फल समय से पहले गिर जाते हैं।
- छायादार और अधिक नमी वाले बगीचों में रोग के लक्षण अधिक स्पष्ट होते हैं।
विशेषज्ञों की सिफारिशें:
- सेब पर अल्टरनेरिया रोग के उपचार के लिए हेक्साकोनाजोल को जिनेब (500 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी) या डोडीन (150 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी) के साथ मिलाकर प्रयोग करने की सलाह दी गई है।
- शिमला जिले में इस रोग के सबसे अधिक प्रभाव को देखते हुए, बागवानी विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र को सक्रिय निगरानी और शीघ्र कार्रवाई की आवश्यकता है।
अधिक जानकारी:
- डॉ. उषा वर्मा, प्रभारी, कृषि विज्ञान केंद्र रोहड़ू ने बताया कि कई स्थानों पर 90 प्रतिशत पौधे प्रभावित हैं।
- विनय कुमार, निदेशक, बागवानी विभाग ने कहा कि नौणी विश्वविद्यालय की टीम ने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर इस रोग के प्रभाव का विश्लेषण किया है।
- डॉ. जेएन शर्मा, सेवानिवृत्त अनुसंधान निदेशक, बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी ने कहा कि विशेषज्ञों की सिफारिशों का पालन करना आवश्यक है ताकि रोग पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सके।
हिमाचल प्रदेश में सेब की फसल पर अल्टरनेरिया रोग के बढ़ते प्रकोप ने बागवानों की चिंताओं को और बढ़ा दिया है। जलवायु परिवर्तन, निर्धारित शेड्यूल के अनुसार छिड़काव की कमी और पौधों की कमजोरी जैसे प्रमुख कारणों के चलते इस रोग ने व्यापक रूप से असर डाला है। विशेष रूप से शिमला और कुल्लू जिलों में इसका प्रभाव अधिक देखने को मिल रहा है, जहां पौधों की 70 से 90 प्रतिशत तक की क्षति हो चुकी है।
बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार, समय पर छिड़काव और उचित फसल प्रबंधन की आवश्यकता है। रोग के प्रभावी नियंत्रण के लिए हेक्साकोनाजोल और जिनेब या डोडीन का प्रयोग करना उचित रहेगा। साथ ही, छायादार और अधिक नमी वाले बगीचों में विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
संगठित प्रयासों और उचित तकनीकी उपायों के माध्यम से इस रोग पर प्रभावी नियंत्रण पाना संभव है, जिससे हिमाचल प्रदेश की महत्वपूर्ण सेब फसल को बचाया जा सकता है और बागवानों को होने वाली आर्थिक क्षति को कम किया जा सकता है।
source and data – दैनिक जागरण