कमजोर इको सिस्टम के कारण बिगड़ रही है मानव की रोग प्रतिरोधक क्षमता

saurabh pandey
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पर्यावरण और मानव के बीच एक गहरा और जटिल संबंध है। स्वच्छ हवा और जीवंत वातावरण मानव स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखते हैं, लेकिन इकोसिस्टम में कमजोरी का सीधा असर इंसानी स्वास्थ्य पर पड़ता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार, 60 प्रतिशत मानव रोग ऐसे होते हैं, जो जानवरों से इंसानों में आते हैं, जिन्हें जूनोटिक रोग कहा जाता है। इसका मुख्य कारण पर्यावरण असंतुलन और इकोसिस्टम की गिरावट है।

इकोसिस्टम में गड़बड़ी और बढ़ते जूनोटिक रोग विशेषज्ञों के अनुसार, कोविड जैसे वायरस जंगलों में पैदा होते हैं, और एक सक्रिय और संतुलित इकोसिस्टम उनकी मारक क्षमता को नियंत्रित करता है। हालांकि, जैसे-जैसे जंगलों की सक्रियता कम हो रही है, वैसे-वैसे ये वायरस मानव बस्तियों में प्रवेश करने लगे हैं, जिससे महामारी जैसी स्थितियां पैदा हो रही हैं।

विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस का महत्त्व

प्राकृतिक संतुलन और मानव स्वास्थ्य के बीच इस गहरे संबंध को समझाने के लिए 26 सितंबर को विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। यह दिवस पर्यावरण को सुरक्षित रखने और मानव स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। इसका आरंभ 2011 में अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण स्वास्थ्य महासंघ ने किया था।

दिल्ली का कमजोर इकोसिस्टम और बढ़ता खतरा

विशेषज्ञों की राय में, दिल्ली-एनसीआर जैसे शहरी क्षेत्रों का इकोसिस्टम बेहद कमजोर और सरल है, जिसमें विविधता की कमी है। यह स्थिति वायरस के फैलाव की संभावना को बढ़ा देती है। दिल्ली के वन क्षेत्र में भी असमानता है। 1993 में दिल्ली का वन क्षेत्र मात्र 1.48 प्रतिशत था, जो 2021 में बढ़कर 23.06 प्रतिशत हो गया। इसके बावजूद, यह अभी भी आदर्श 33 प्रतिशत से काफी कम है।

जैव विविधता पार्कों की महत्त्वपूर्ण भूमिका

दिल्ली में डीडीए द्वारा विकसित सात जैव विविधता पार्क वातावरण को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. फैयाज खुदसर कहते हैं कि ये क्षेत्र स्वस्थ और मजबूत जैव विविधता बनाए रखते हैं, जो रोगजनक वायरस को इंसानी बस्तियों में प्रवेश करने से रोकने में सहायक होते हैं।

शहरी क्षेत्रों में असमान हरियाली का संकट

दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में हरित क्षेत्र की स्थिति भी असमान है। जहां नई दिल्ली में 47.1 प्रतिशत हरित क्षेत्र है, वहीं उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में यह केवल 4 प्रतिशत है। घनी बस्तियों में हरियाली की कमी के कारण हवा और पानी की गुणवत्ता गिरती जा रही है, और वायरस जनित बीमारियों का खतरा बढ़ता जा रहा है।

जंगलों से जुड़े प्रमुख वायरस और उनका फैलाव

  • एचआईवी वायरस अफ्रीका में चिम्पांजी से इंसानों में फैला।
  • इबोला वायरस अफ्रीका में चमगादड़ों से इंसानों में आया।
  • निपाह वायरस मलेशिया में सूअरों से इंसानों में फैला।
  • चीन में कोरोना वायरस चमगादड़ों से पैंगोलिन और फिर इंसानों में पहुंचा।

इकोसिस्टम का कमजोर होना मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। घने शहरी इलाकों में हरियाली की कमी और प्रदूषण इस खतरे को और बढ़ा रहे हैं। पर्यावरणविदों और योजना निर्माताओं को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि मानव और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखा जा सके।

मानव की रोग प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना सीधे तौर पर पर्यावरण के असंतुलन और कमजोर इकोसिस्टम से जुड़ा हुआ है। जब जंगलों और हरित क्षेत्रों में गिरावट होती है, तो यह वायरस और बीमारियों को मानव बस्तियों तक पहुंचने का रास्ता खोलता है। शहरी क्षेत्रों में हरियाली की कमी, घनी आबादी और बढ़ता प्रदूषण इस खतरे को और बढ़ा रहे हैं। मानव स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हम अपने इकोसिस्टम को पुनर्जीवित करें, हरित क्षेत्रों का विस्तार करें और प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझें। पर्यावरण के प्रति हमारी लापरवाही केवल हमारी सेहत पर ही नहीं, बल्कि पूरी मानवता के भविष्य पर भी भारी पड़ सकती है।

Source- amar ujala

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