उत्तराखंड के धधकते जंगलों से कैसे मिलेगी राहत? रिपोर्ट ने बताए सुधार के उपाय

saurabh pandey
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उत्तराखंड के जंगल हर साल भीषण आग की चपेट में आ जाते हैं, जिससे न केवल वन्य जीवन और पर्यावरण को नुकसान होता है, बल्कि स्थानीय निवासियों की आजीविका भी प्रभावित होती है। आग पर नियंत्रण के लिए उठाए गए कदम नाकाफी साबित होते रहे हैं। इस मुद्दे पर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) के हस्तक्षेप के बाद एक रिपोर्ट तैयार की गई, जिसमें बेहतर प्रबंधन और बुनियादी ढांचे के विकास की सिफारिशें की गई हैं।

एमिकस क्यूरी गौरव कुमार बंसल द्वारा 14 अक्टूबर, 2024 को NGT को सौंपी गई इस रिपोर्ट में उत्तराखंड वन विभाग के अग्नि प्रबंधन तंत्र में कई महत्वपूर्ण खामियों की ओर इशारा किया गया है। रिपोर्ट ने सुझाव दिया है कि राज्य की फायर लाइन्स (जंगलों में आग को सीमित करने के लिए बनाई जाने वाली खाली पट्टियां) की लंबे समय से समीक्षा नहीं की गई है, और इनकी पुनः जांच और सुधार जरूरी है।

आग प्रबंधन के लिए धन और मानव संसाधन की जरूरत

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को उत्तराखंड सरकार को धन मुहैया कराना चाहिए, ताकि वन विभाग अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत कर सके।

उत्तराखंड में जंगलों में आग से निपटने के लिए पर्याप्त संख्या में वन रक्षक, चौकीदार और वनपालों की नियुक्ति की भी आवश्यकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा वनकर्मी कई क्षेत्रों में अपर्याप्त हैं, जिससे आग पर समय पर काबू नहीं पाया जा पाता।

CAG रिपोर्ट की सिफारिशों का पालन जरूरी

उत्तराखंड सरकार से यह भी कहा गया है कि वह भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा जारी अनुपालन रिपोर्ट (31 मार्च, 2020 से 31 मार्च, 2021) की सिफारिशों का पालन सुनिश्चित करे। रिपोर्ट में वन प्रबंधन से जुड़े बुनियादी मुद्दों पर ध्यान दिलाया गया है, जिन पर अब तक कार्रवाई नहीं की गई है।

ऋषिकेश-देहरादून रोड पर पत्तियों का जलना: कानून का उल्लंघन

NGT ने अप्रैल 2024 में ऋषिकेश-देहरादून रोड के किनारे बड़कोट वन क्षेत्र में सूखी पत्तियों को जलाने की घटना का संज्ञान लिया था। सूखी पत्तियों को जलाना न केवल वन्य जीवों के लिए हानिकारक है, बल्कि यह हवा में कार्बन उत्सर्जन भी बढ़ाता है, जिससे वायु प्रदूषण होता है। एमिकस क्यूरी की रिपोर्ट में ऐसे उल्लंघनों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की सिफारिश की गई है।

अग्नि प्रबंधन की मौजूदा खामियाँ

  • रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जंगलों में आग पर काबू पाने के लिए मौजूदा व्यवस्थाएं नाकाफी हैं।
  • फायर लाइन्स का सही रखरखाव न होने से आग तेजी से फैल जाती है।
  • अग्निशमन उपकरणों और प्रशिक्षण की कमी से फील्ड कर्मचारी समय पर आग को नियंत्रित नहीं कर पाते।
  • जागरूकता अभियानों का अभाव भी स्थानीय निवासियों के सहयोग में कमी लाता है।
  • सुझाव: दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता

उत्तराखंड में आग प्रबंधन की स्थायी व्यवस्था के लिए दीर्घकालिक योजनाएं बनानी होंगी। कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं:

  • सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा दिया जाए, ताकि स्थानीय लोग जंगल की सुरक्षा में सक्रिय भूमिका निभा सकें।
  • अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाए, जैसे ड्रोन सर्विलांस और रिमोट सेंसिंग के जरिए आग का प्रारंभिक पता लगाना।
  • वनीकरण और पुनर्वनीकरण कार्यक्रम चलाए जाएं, ताकि क्षतिग्रस्त क्षेत्रों को दोबारा हरित किया जा सके।
  • फायर लाइन्स का समय-समय पर निरीक्षण और मेंटेनेंस अनिवार्य किया जाए।

उत्तराखंड के जंगलों में बढ़ती आग की घटनाएं केवल वनस्पति और पर्यावरण के लिए नहीं, बल्कि मानव जीवन के लिए भी गंभीर खतरा हैं। फायर लाइन्स की नियमित समीक्षा, वनकर्मियों की संख्या बढ़ाने और आधुनिक उपकरणों के उपयोग से आग पर बेहतर नियंत्रण पाया जा सकता है। सरकार, स्थानीय समुदाय और वन विभाग के बीच बेहतर समन्वय से ही जंगलों की रक्षा संभव है।

जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के बीच वन संरक्षण और अग्नि प्रबंधन की चुनौतियां और भी महत्वपूर्ण हो गई हैं। उत्तराखंड के जंगलों को बचाने के लिए एक व्यापक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।

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