जलवायु परिवर्तन के चलते वैश्विक स्तर पर कृषि सेक्टर कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। विशेष रूप से धान की खेती पर इसका प्रभाव अत्यधिक गंभीर हो रहा है। धान, जो कि करोड़ों लोगों की मुख्य खाद्य वस्तु है, अब पानी की कमी, बदलते मौसम और बढ़ती तापमान के कारण संकट में है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे केरल के किसान बदलती जलवायु के प्रभावों से निपट सकते हैं और धान की पैदावार को बनाए रख सकते हैं।
पानी की अत्यधिक मांग
धान की फसल के लिए अत्यधिक मात्रा में पानी की जरूरत होती है। एक अनुमान के अनुसार, प्रति किलोग्राम धान के उत्पादन के लिए लगभग 5,000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। यह पानी की मांग स्थानीय भूजल रिचार्ज क्षमता से कहीं अधिक है, जिसके कारण पानी की उपलब्धता में तेजी से कमी आ रही है। जलवायु परिवर्तन और अनियमित मानसून की वजह से पानी की आपूर्ति और भी सीमित हो गई है, जिससे किसानों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
स्थानीय जल प्रबंधन में सुधार
इस चुनौती से निपटने के लिए, अध्ययनकर्ताओं ने स्थानीय जल प्रबंधन की प्रणालियों को बेहतर बनाने की सलाह दी है। इसके अंतर्गत सिंचाई प्रणालियों का उन्नयन, बारिश के पानी का संचित करना, और मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए कवर क्रॉपिंग और मल्चिंग जैसी तकनीकों का उपयोग शामिल है। ये उपाय जल संरक्षण में मदद कर सकते हैं और धान की पैदावार को बढ़ा सकते हैं।
जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों का अपनाना
जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों का पालन करना अब अनिवार्य हो गया है। इन पद्धतियों में सिंचाई की दक्षता बढ़ाना, अधिक पौष्टिक और कम पानी की आवश्यकता वाली फसलें उगाना, और मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखना शामिल है। कोलेंगोडे जैसे क्षेत्रों में किसान पहले से ही पानी बचाने वाली तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन इन तकनीकों को व्यापक रूप से अपनाना आवश्यक है।
बारिश के पानी का संचित करना
कोलेंगोडे में बारिश के पानी को स्टोर करने की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। बड़े टैंक और कुओं का उपयोग करके पानी को संचित किया जा सकता है, जिससे भूजल का रिचार्ज किया जा सके। इस पानी का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा सकता है, जो किसानों को अतिरिक्त फसलों की पैदावार में मदद कर सकता है।
किसानों की आय में वृद्धि
सही जल प्रबंधन और जलवायु-अनुकूल पद्धतियों को अपनाने से न केवल धान की पैदावार में सुधार होगा, बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि हो सकती है। अच्छी सिंचाई प्रणाली और जलवायु-अनुकूल तकनीकों के उपयोग से कृषि उत्पादन में विविधता आ सकती है, जिससे किसानों को अधिक लाभ हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन और जल की कमी जैसी समस्याओं का सामना करने के लिए किसानों को नए तरीकों और तकनीकों को अपनाना होगा। स्थानीय जल प्रबंधन को बेहतर बनाकर, जलवायु-अनुकूल पद्धतियों को अपनाकर, और बारिश के पानी को संचित करके, किसान अपने धान की फसल को संकट से उबार सकते हैं। इन उपायों को अपनाने से न केवल उनकी कृषि उत्पादन क्षमता में सुधार होगा, बल्कि उनकी आय में भी वृद्धि होगी, जिससे वे एक स्थायी और लाभकारी भविष्य की दिशा में बढ़ सकेंगे।
जलवायु परिवर्तन और पानी की कमी के चलते धान की खेती पर गंभीर चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं। लेकिन, सही रणनीतियों और उपायों को अपनाकर इन समस्याओं से निपटने की संभावना बनी हुई है। किसानों को जल प्रबंधन को बेहतर बनाने, जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाने, और बारिश के पानी को संचित करने जैसे उपायों को लागू करने की आवश्यकता है। ये उपाय न केवल धान की पैदावार को बनाए रखने में सहायक होंगे, बल्कि किसानों की आय को भी बढ़ा सकते हैं। जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना करने के लिए सतत और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है, ताकि कृषि क्षेत्र में स्थिरता और वृद्धि सुनिश्चित की जा सके। इस प्रकार, किसानों की कठिनाइयों को कम करने और कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम इन रणनीतियों को अपनाएं और प्रभावी ढंग से कार्य करें।
Source- down to earth