पिथौरागढ़ का मिलम, टिहरी का खतलिंग और हिमाचल का त्रिलोकीनाथ ग्लेशियर हैं शामिल
यह अध्ययन हिमालय के ग्लेशियरों की स्थिति की गहनता को उजागर करेगा और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने में मदद करेगा। एनआईएच रुड़की के निदेशक डॉ. एमके जैन ने कहा कि इस कार्य से ग्लेशियरों के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी।
उत्तरकाशी के ग्लेशियर की 2002 से निगरानी कर रहा राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान
रुड़की: गंगोत्री ग्लेशियर का अध्ययन करने के साथ ही अब राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान (एनआईएच) रुड़की के वैज्ञानिक हिमालय के तीन अन्य प्रमुख ग्लेशियरों की निगरानी करेंगे। इनमें उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में मिलम ग्लेशियर, टिहरी जिले में खतलिंग ग्लेशियर के साथ ही हिमाचल प्रदेश का त्रिलोकीनाथ ग्लेशियर शामिल हैं।
गंगोत्री ग्लेशियर की मोटाई का भी अध्ययन
संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. सुरजीत सिंह ने बताया कि एनआईएच अब मिलम, खतलिंग और त्रिलोकीनाथ ग्लेशियर की भी अध्ययन करेगा। संस्थान द्वारा गंगोत्री ग्लेशियर की मोटाई की भी जांच होगी। ग्लेशियर की मोटाई में किसी तरह का बदलाव आ रहा है या नहीं, यह भी जांचा जाएगा। इस अध्ययन से ग्लेशियर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का भी पता चलेगा।
बम्बू स्टिक से करेंगे माप
एनआईएच रुड़की की ओर से गंगोत्री, मिलम, खतलिंग और त्रिलोकीनाथ ग्लेशियर की बम्बू स्टिक से माप की जाएगी। डॉ. सुरजीत सिंह ने बताया कि इस विधि से ग्लेशियर की मोटाई की दूसरी बार माप की जाएगी। पिछली बार गंगोत्री ग्लेशियर पर संस्थान की ओर से इसी विधि से माप 2019 में की गई थी।
जलवायु परिवर्तन के कारण खतराः
भारतीय हिमालयी क्षेत्र वर्तमान में वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे में है। हिमालय के ग्लेशियरों की मोटाई में 1955 के बाद वृद्धि हुई है। यह वृद्धि वर्ष 1980 के दशक से अधिक देखी गई है। अध्ययन से यह भी ज्ञात हुआ कि हिमालय के ग्लेशियर पिछले लगभग 100 वर्षों से घट रहे हैं और इसके कारण ग्लेशियर लगभग 1850 के पहले की स्थिति में पहुँच चुके हैं।