हिमाचल प्रदेश में जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण से पर्यावरणीय असंतुलन और प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। हाल ही में, हिमाचल प्रदेश में कई स्थानों पर प्राकृतिक आपदाएं आई हैं, जिनमें से अधिकांश घटनाएं जल विद्युत परियोजनाओं के आस-पास घटित हुई हैं। इस रिपोर्ट में हम इन आपदाओं की प्रमुख घटनाओं, उनके कारणों और भविष्य में संभावित प्रभावों का विश्लेषण करेंगे।
पारिस्थितिकी पर प्रभाव
हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट्स के निर्माण से उस क्षेत्र की पारिस्थितिकी में भारी बदलाव देखने को मिलते हैं। हिमाचल प्रदेश में पिछले एक वर्ष में घटी प्राकृतिक आपदाओं की घटनाओं का आकलन करने पर, ज्यादातर घटनाएं जल विद्युत परियोजनाओं या नेशनल हाईवे प्रोजेक्ट्स के आस-पास पाई गई हैं। इन परियोजनाओं के कारण पर्यावरण में परिवर्तन हो रहा है, जिससे प्राकृतिक आपदाओं की संभावना बढ़ गई है।
पर्यावरणविद् कुलभुषण उपमन्यू के अनुसार, हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट्स के निर्माण से क्षेत्र की पारिस्थितिकी में बदलाव होता है। इन परियोजनाओं में बनाए गए डैम्स के मलबे में लकड़ी और अन्य ऑर्गेनिक मैटर सड़ते हैं, जिससे मिथेन गैस उत्पन्न होती है। मिथेन गैस के कारण तापमान में वृद्धि होती है, जिससे बादल फटने और लैंड स्लाइड जैसी आपदाएं अधिक होती हैं।
2024 की आपदाएं
1 जनवरी से 31 जुलाई 2024 के बीच, हिमाचल प्रदेश में 7 स्थानों पर बादल फटने की घटनाएं हुई हैं। इनमें से 4 स्थानों पर जल विद्युत परियोजनाएं थीं। 25 जुलाई को मनाली के धुंधी क्षेत्र में अंजनी महादेव नाले में बादल फटने के बाद बाढ़ आ गई थी, जिससे राष्ट्रीय राजमार्ग बंद हो गया था। इस स्थान पर 9 मेगावाट की पावर प्रोजेक्ट मौजूद है।
31 जुलाई को एक साथ चार स्थानों पर बादल फटने की घटनाएं हुईं। इनमें से मलाणा पावर प्रोजेक्ट स्टेज 1 के डैम के पास बादल फटने से भारी बाढ़ आ गई, जिससे निचले क्षेत्रों में जलभराव हुआ। शिमला के रामपुर क्षेत्र में भी बादल फटने की घटना हुई, जिससे 2 लोगों की मौत और 34 लोग लापता हो गए। पार्वती वैली के तोष क्षेत्र में भी बादल फटने से भारी नुकसान हुआ, जहां पार्वती स्टेज टू पावर प्रोजेक्ट स्थित है।
पर्यावरणीय दृष्टिकोण
जम्मू सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सुनिल धर के अनुसार, हिमाचल के पहाड़ कमजोर हो गए हैं। अवैज्ञानिक कटान, मिट्टी की डंपिंग और अन्य कारणों से लैंड स्लाइड की घटनाएं बढ़ रही हैं। हिमधारा कलेक्टिव की सह-संस्थापक मानसी अशर ने बताया कि परियोजनाओं के निर्माण के लिए अत्यधिक पेड़ काटे जाते हैं और भूमि का उपयोग बदलता है, जिससे छोटी घटनाएं भी बड़ी आपदाओं का रूप ले लेती हैं।
उन्होंने कहा कि 31 जुलाई को पालमपुर में 212 मिमी बारिश हुई, लेकिन वहां कोई नुकसान नहीं हुआ, जबकि कुल्लू, मनाली और रामपुर में कम बारिश में भी बहुत अधिक नुकसान देखने को मिला है।
भविष्य की चुनौतियां
हिमाचल प्रदेश में वर्तमान में 174 छोटी और बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं हैं, जिनमें 11209 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। प्रदेश की सरकार 30 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता को बढ़ाने के प्रयास में है। हालांकि, हाल की प्राकृतिक आपदाओं के मद्देनजर, स्थानीय लोग और पर्यावरणविद् जल विद्युत परियोजनाओं के खिलाफ मुखर हो रहे हैं।
किन्नौर के युवा महेश नेगी ने कहा कि पावर प्रोजेक्ट्स की वजह से स्थानीय लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है, और भविष्य में नए प्रोजेक्ट्स का विरोध जारी रहेगा। पिछले वर्षों में भी भारी त्रासदियां आई हैं, और प्राकृतिक आपदाओं की घटनाओं में वृद्धि हो रही है।
हिमाचल प्रदेश में परियोजनाओं के निर्माण से पहले उस स्थान की पारिस्थितिकी का सही तरीके से आकलन करना चाहिए। स्थानीय लोगों की राय लेना और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का सही मूल्यांकन आवश्यक है। पावर प्रोजेक्ट्स के निर्माण के लिए हाईकोर्ट के निर्देषों पर बनी अभय शुक्ला कमेटी की सिफारिशों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए, ताकि भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं को नियंत्रित किया जा सके।
source and data – down to earth