दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर में 60 साल पुराने पीपल के पेड़ की कटाई को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने कड़ा संज्ञान लिया है। यह मामला तब सामने आया जब एमसीडी के उद्यान विभाग ने इस पेड़ की कटाई की, जबकि अदालत ने पूर्व में इसे कंक्रीट से मुक्त करने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने इसे न्यायालय के आदेश की अवमानना मानते हुए एमसीडी और वन विभाग को अवमानना नोटिस जारी किया है।
अदालत का आदेश और उसकी अनदेखी
दो साल पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने ओल्ड राजेंद्र नगर स्थित इस पुराने पेड़ को कंक्रीट से मुक्त करने का आदेश दिया था, जिससे वह फिर से स्वाभाविक रूप से विकसित हो सके। लेकिन इस आदेश का पालन नहीं किया गया, और कंक्रीट हटाने की बजाय एमसीडी ने पेड़ की छंटाई की अनुमति मांगी। अदालत ने पाया कि एमसीडी और वन विभाग ने उचित निरीक्षण किए बिना छंटाई की, जिससे पेड़ काफी कमजोर हो गया।
पेड़ की हालत गंभीर, अदालत ने जताई नाराजगी
याचिकाकर्ता भरवीन खंडारी की ओर से पेश हुए वकील ने अदालत को बताया कि भारी छंटाई और कंक्रीट से घिरे होने के कारण पीपल का पेड़ अब कमजोर हो चुका है। जस्टिस जसमीत सिंह की अध्यक्षता वाली बेंच ने इसे न्यायालय के आदेश की अवमानना बताते हुए एमसीडी और वन विभाग के अधिकारियों को नोटिस जारी किया और पूछा कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए।
एमसीडी और वन विभाग को निर्देश
कोर्ट ने एमसीडी और वन विभाग को निर्देश दिया है कि वे संबंधित पेड़ की मरम्मत और उसकी स्थिति में सुधार के लिए हर संभव कदम उठाएं। इसके साथ ही कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा कि भविष्य में इस तरह के मामलों में न्यायालय के आदेशों का पूर्ण रूप से पालन हो।
पर्यावरण और न्यायालय की भूमिका
यह मामला सिर्फ एक पेड़ की कटाई का नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और न्यायिक आदेशों की अनदेखी का गंभीर उदाहरण है। बढ़ते शहरीकरण के बीच हरे-भरे पेड़ों को संरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है, और इस मामले ने एक बार फिर दिखाया कि प्रशासनिक संस्थाओं द्वारा लापरवाही और अनुशासनहीनता किस तरह पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकती है।
दिल्ली जैसे महानगरों में, जहां प्रदूषण और गर्मी तेजी से बढ़ रही है, पेड़ों का महत्व और भी ज्यादा हो जाता है। इस घटना से एक संदेश जाता है कि पर्यावरण से जुड़ी अदालत के आदेशों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, और अगर ऐसा नहीं होता, तो इसका असर न केवल पर्यावरण पर पड़ता है, बल्कि जिम्मेदार अधिकारियों के लिए भी मुश्किलें खड़ी होती हैं।
न्यायालय सख्त रुख
दिल्ली हाईकोर्ट का यह कदम दिखाता है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए न्यायालय सख्त रुख अपना सकता है। ऐसे मामले सिर्फ कानूनी मुद्दे नहीं होते, बल्कि समाज को यह भी याद दिलाते हैं कि हरे-भरे पेड़ और स्वच्छ पर्यावरण हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं। उम्मीद है कि इस मामले में एमसीडी और वन विभाग समय रहते कदम उठाएंगे और भविष्य में ऐसे मामलों में न्यायालय के आदेशों का पूरा पालन करेंगे।
दिल्ली हाईकोर्ट का इस मामले में सख्त रुख यह दर्शाता है कि पर्यावरण संरक्षण को नजरअंदाज करने वाले अधिकारियों और संस्थाओं के खिलाफ कार्रवाई जरूरी है। 60 साल पुराने पीपल के पेड़ की कटाई न केवल न्यायालय के आदेशों की अवहेलना थी, बल्कि पर्यावरण को भी गंभीर नुकसान पहुंचाने वाली घटना है। इस मामले में कोर्ट द्वारा एमसीडी और वन विभाग को अवमानना के लिए दोषी ठहराना यह साबित करता है कि पर्यावरण से जुड़े मामलों में किसी भी प्रकार की लापरवाही स्वीकार्य नहीं है। हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों और हरियाली की रक्षा के लिए और अधिक सतर्कता और जिम्मेदारी की जरूरत है, ताकि भविष्य में ऐसे घटनाओं से बचा जा सके।
Source- dainik jagran