दिल्ली की तीन प्रमुख लैंडफिल साइट्स – भलस्वा, गाजीपुर और ओखला के आसपास का भूजल बेहद प्रदूषित हो चुका है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, इन इलाकों में रहने वाले लोगों का भूजल 10 गुना ज्यादा प्रदूषित है, जो उनके स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन चुका है।
यह रिपोर्ट अगस्त 2024 में जारी की गई, जिसमें लैंडफिल साइट्स के पास से लिए गए पानी के नमूनों की जांच की गई। रिपोर्ट में बताया गया कि ये नमूने 8 विभिन्न मानकों पर जांचे गए, जिनमें अधिकांश मापदंडों पर यह पानी असफल रहा। इससे यह साफ होता है कि इन साइट्स के आसपास रहने वाले लोगों का जल स्रोत लगातार जहरीला हो रहा है।
क्यों है यह समस्या गंभीर?
दिल्ली के भलस्वा, गाजीपुर और ओखला लैंडफिल साइट्स में सालों से बिना सोचे-समझे कचरा फेंका जाता रहा है। इस कचरे से रिसने वाला लीचेट (कचरे का पानी) ज़मीन के अंदर जाकर भूजल को प्रदूषित कर रहा है। भूजल उन लोगों के लिए पीने, खाना पकाने और दैनिक उपयोग के लिए एकमात्र स्रोत है, जो इन साइट्स के पास रहते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, भलस्वा, गाजीपुर और ओखला के आसपास के इलाकों से नमूने लिए गए, जिनकी जांच पीएच, टीडीएस (घुलित ठोस पदार्थ), क्लोराइड, कैल्शियम, सल्फेट, नाइट्रेट और फ्लोराइड जैसे मापदंडों पर की गई। इनमें से अधिकांश मापदंडों में पानी की गुणवत्ता तय मानकों से कहीं ज्यादा खतरनाक स्तर पर पाई गई।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
टीडीएस (घुलित ठोस पदार्थ) की सामान्य सीमा 500 मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए, लेकिन भलस्वा और गाजीपुर के पास यह 5,000 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुंच गया है। इसका मतलब है कि यहां का पानी पीने लायक नहीं है और इसमें ठोस पदार्थों की मात्रा खतरनाक स्तर पर है।
क्लोराइड की सामान्य सीमा 250 मिलीग्राम प्रति लीटर है, जबकि लैंडफिल साइट्स के पास यह 1,600 से 1,700 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुंच गई है। अधिक क्लोराइड से पानी खारा और कड़वा हो जाता है, जिससे यह पीने के लिए अयोग्य हो जाता है।कैल्शियम और मैग्नीशियम की मात्रा भी सामान्य सीमा से कई गुना अधिक पाई गई, जो पानी को अत्यधिक कठोर बना रही है।
स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव
भूजल में प्रदूषण की यह स्थिति केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं है, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरे की घंटी है। दूषित पानी का सेवन करने से कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि पेट के रोग, त्वचा में जलन, किडनी की समस्याएं और यहां तक कि गंभीर बीमारियां जैसे कैंसर का खतरा भी बढ़ सकता है। विशेष रूप से बच्चों और बुजुर्गों के लिए यह समस्या और भी गंभीर हो सकती है, क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है।
दिल्ली में हवा भी सांस लेने लायक नहीं
दिल्ली में सिर्फ जल प्रदूषण ही नहीं, बल्कि वायु प्रदूषण भी एक गंभीर समस्या है। जैसे ही तापमान गिरता है, हवा में धूल और धुआं बढ़ता जा रहा है। गुरुग्राम के कई हिस्सों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 150 से 200 के बीच दर्ज किया गया, जो कि ‘खराब’ श्रेणी में आता है। 200 से अधिक का AQI मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक माना जाता है, खासकर अस्थमा और अन्य सांस संबंधी रोगों से पीड़ित लोगों के लिए।
दिवाली के समय पर पटाखों के उपयोग और हरियाणा-पंजाब में पराली जलाने से दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण और भी अधिक बढ़ने की आशंका है। प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसे रोकने के लिए कुछ उपाय किए हैं, लेकिन अभी तक यह समस्या पूरी तरह से नियंत्रित नहीं हो पाई है।
समाधान की दिशा में क्या किया जा सकता है?
- लीचेट प्रबंधन: लैंडफिल साइट्स से निकलने वाले जहरीले लीचेट को रोकने के लिए विशेष बंधन प्रणाली (लीचेट कैप्चर सिस्टम) लागू की जानी चाहिए, ताकि यह भूजल में न घुले।
- वेस्ट सेग्रेगेशन: कचरे को लैंडफिल साइट्स पर फेंकने से पहले उसे अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया जाना चाहिए, ताकि रिसाइकल करने योग्य सामग्री को अलग करके केवल जैविक कचरे को ही जमीन में दबाया जा सके।
- वायु प्रदूषण के लिए सख्त कदम: प्रशासन को दिवाली के समय पटाखों के इस्तेमाल पर सख्ती से पाबंदी लगानी चाहिए, साथ ही पराली जलाने वाले किसानों के लिए वैकल्पिक समाधान देने चाहिए, ताकि उन्हें पराली जलाने की जरूरत न पड़े।
- निगरानी और सख्त नियम: प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नियमित रूप से इन लैंडफिल साइट्स और वायु प्रदूषण की निगरानी करनी चाहिए और इसके लिए सख्त नियम लागू करने चाहिए।
दिल्ली और एनसीआर में बढ़ता जल और वायु प्रदूषण न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि इसके गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव भी सामने आ रहे हैं। समय रहते अगर सही कदम नहीं उठाए गए, तो यह समस्या और भी विकराल हो सकती है। सरकार, प्रशासन और आम जनता को मिलकर इस समस्या से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
दिल्ली और एनसीआर में बढ़ते जल और वायु प्रदूषण की समस्या बेहद गंभीर है, जिसका सीधा असर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। लैंडफिल साइट्स के आसपास का भूजल बेहद खतरनाक स्तर तक प्रदूषित हो चुका है, जिससे स्थानीय निवासियों के लिए जल संकट और स्वास्थ्य संबंधी खतरों की स्थिति उत्पन्न हो रही है। साथ ही, वायु प्रदूषण भी लगातार बढ़ रहा है, जिससे सांस संबंधी बीमारियों और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम बढ़ रहा है।
इस गंभीर स्थिति को नियंत्रित करने के लिए तत्काल ठोस कदम उठाने की जरूरत है, जैसे लीचेट प्रबंधन, कचरे का सही तरीके से निपटान और वायु प्रदूषण पर सख्त पाबंदियां। सरकार और स्थानीय प्रशासन के साथ-साथ आम जनता की भी जिम्मेदारी है कि वे प्रदूषण को नियंत्रित करने में अपना योगदान दें। अगर इन समस्याओं को नजरअंदाज किया गया, तो आने वाले समय में यह संकट और भी गंभीर रूप धारण कर सकता है।