केन्या में कौवे अब इतनी बड़ी समस्या बन गए हैं कि वहां की सरकार ने इस साल के अंत तक 10 लाख कौवों को मारने की योजना बनाई है। यह कदम घरेलू कौवा उन्मूलन परियोजना (2021-2026) के तहत उठाया जा रहा है, जिसके लिए न्यूजीलैंड से विशेष कीटनाशक ‘स्टारलीसाइड’ आयात किया जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस अभियान में करीब पांच से 10 किलोग्राम कीटनाशक की जरूरत होगी, जिसकी कीमत लगभग छह हजार डॉलर प्रति किलोग्राम है। इस तरह, इस अभियान पर अनुमानित खर्च 25 से 50 लाख रुपये के बीच होगा।
कौवे की समस्याएँ और उनके प्रभाव
केन्या में कौवे सबसे पहले 1880 में आए थे, जब उन्हें जैविक कचरे की सफाई के लिए भारत से लाया गया था। हालांकि, अगले चार दशकों में ही ये कौवे केन्यावासियों के लिए परेशानी का कारण बन गए। 1917 में, इन कौवों को ‘समस्याग्रस्त कीट’ घोषित किया गया था। वर्तमान में, केन्या वन्यजीव सेवा ने इन्हें ‘आक्रामक विदेशी पक्षी’ घोषित कर दिया है, और ये कौवे अब सार्वजनिक जीवन के लिए गंभीर उपद्रव बन चुके हैं।
कौवे ने केन्या की अर्थव्यवस्था और समाज को गंभीर नुकसान पहुँचाया है। ये कौवे खेतों में फसलों को नष्ट कर देते हैं, स्थानीय पक्षियों को उनके आवासों से बाहर निकाल देते हैं, भोजन के लिए पर्यटकों पर झपटते हैं, हवाई अड्डों पर उड़ानों को बाधित करते हैं, और चूजों पर हमला करते हैं। इसके अतिरिक्त, ये कई बीमारियों के वाहक भी बन गए हैं। आम, अमरूद, पपीते के पेड़ों और गेहूं, चावल, बाजरा, मक्का जैसी फसलों को नुकसान पहुँचाकर किसानों की समस्याएँ बढ़ा दी हैं।
नैतिक और पारिस्थितिक चिंताएँ
हालांकि, कौवे को आमतौर पर बुद्धिमान और समझदार माना जाता है। उनके कांव-कांव को घर में मेहमानों के आने का संकेत माना जाता है, और वे ‘प्राकृतिक सफाईकर्मी’ के रूप में भी काम करते हैं। हिंदू धर्म में पितृ पक्ष के दौरान कौवों को भोजन कराने की परंपरा है। हाल के वर्षों में, उनके संख्या में तेजी से कमी आई है, और अब घर की मुंडेर पर उनकी कांव-कांव की आवाज कम सुनाई देती है।
10 लाख कौवों को मारने की योजना ने पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के बीच नैतिक चिंताओं को जन्म दिया है। सामाजिक और पारिस्थितिक दृष्टिकोण से, किसी भी परिस्थिति में जीवों की सार्वजनिक हत्या उचित नहीं मानी जाती। केन्या सरकार को इस समस्या के समाधान के लिए अन्य पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए।
Source and data- दैनिक जागरण